मुंबई. बंबई हाईकोर्ट ने शनिवार को ‘पुणे पोर्शे कार दुर्घटना’ के आरोपी किशोर की एक चाची की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसे (किशोर को) ‘अवैध’ हिरासत में रखने का दावा करते हुए उसकी तत्काल रिहाई की मांग की गई थी. नाबालिग आरोपी को राहत देने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि वह रिमांड होम में है, इसलिए उसे अंतरिम राहत देते हुए रिहा करने की जरूरत नहीं है. मामले में अगली सुनवाई अब 20 जून को होगी..
महिला ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करके 17-वर्षीय किशोर की तत्काल रिहाई की मांग की थी. याचिका में कहा गया है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को चाहे जिस नजरिये से देखा जाए, यह एक दुर्घटना थी और जिस व्यक्ति के वाहन चलाने के बारे में कहा जा रहा है वह नाबालिग था.
दस जून को दायर की गई याचिका शुक्रवार को न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका यह सुनिश्चित करने के लिए दायर की जाती है कि हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश किया जाए और अदालत यह निर्धारित करे कि हिरासत कानूनी है अथवा गैर-कानूनी.
पुणे पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी वकील हितेन वेनेगांवकर ने याचिका की स्वीकार्यता को चुनौती दी और दलील दी कि किशोर सुधार गृह में कानूनी हिरासत में है. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोंडा ने किशोर की तत्काल रिहाई की मांग की.
यह घटना 19 मई की है जब किशोर कथित तौर पर नशे की हालत में बहुत तेज गति से पोर्शे कार चला रहा था. उसकी कार जब पुणे के कल्याणी नगर इलाके में एक मोटरसाइकिल से टकरा गई, जिसमें दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर- अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई. यह दुर्घटना तब सुर्खियों में आई, जब किशोर को बचाने के लिए काफी प्रयास किए गए. फलस्वरूप उसके पिता-माता और दादा सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया.