संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देने तथा ऐसे मामलों में अदालती हस्तक्षेप को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने एक मसौदा विधेयक पेश किया है। विधि मंत्रालय के विधिक मामलों के विभाग ने मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) विधेयक, 2024 के मसौदे पर टिप्पणियां आमंत्रित की है।
यह मसौदा विधेयक पूर्व विधि सचिव और पूर्व लोकसभा महासचिव टी के विश्वनाथन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति की ओर से मध्यस्थता क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों पर अपनी रिपोर्ट विधि मंत्रालय को सौंपे जाने के कुछ महीने बाद आया है। प्रस्तावित संशोधन में कहा गया है कि मध्यस्थ संस्थाएं अंतरिम उपाय प्रदान करने के उद्देश्य से मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन से पहले आपातकालीन मध्यस्थ की नियुक्ति का प्रावधान कर सकती हैं।
नियुक्त आपातकालीन मध्यस्थ, मध्यस्थता परिषद के निर्दिष्ट तरीके से कार्यवाही का संचालन करेगा। साथ ही मसौदा विधेयक में वर्तमान कानून के कुछ खंडों को भी हटा दिया गया है। हटाए गए खंडों में से एक, संसद सत्र के दौरान प्रस्तावित अधिसूचनाओं को दोनों सदनों में रखे जाने से संबंधित है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पिछले वर्ष इस बात पर दुख जताया था कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने देश की मध्यस्थता प्रणाली को अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा है। इससे अन्य योग्य लोगों को मौका नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा था कि भारत अपने समृद्ध मानव संसाधनों के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्हें मध्यस्थता प्रक्रिया का फैसला करने के लिए नहीं चुना जाता है।