वक्त बदलता है लेकिन मन नहीं बदलता है, विचारधारा नहीं बदलती है, व्यक्ति नहीं बदलता है। बात पिछले नगर निगम चुनाव की है। अपने मन की करने के लिए कका ने लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली याने मतों के माध्यम से महापौर चुनने की व्यवस्था को सिर्फ एक आदमी एजाज ढेबर को रायपुर का महापौर बनाने के लिए बदल दिया था। इस वैतरणी में पूरे प्रदेश के नगर निगम में जनाधार विहीन लोग महापौर बन गए। शहर को सुंदर बनाने के नाम पर जम कर भ्रष्ट्राचार किए।
पिछले निगम चुनाव में प्रमोद दुबे, एक्स महापौर, रायपुर दक्षिण विधान सभा में वंचित किए गए और रायपुर लोकसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी प्रमोद दुबे सशक्त दावेदार थे, उनका दुखद पहलू ये था कि वे एजाज ढेबर नहीं थे और न ही कका के पसंदगी के थे। एजाज ढेबर और प्रमोद दुबे महापौर बनने की पहली सीढ़ी चढ़ने के लिए पार्षद चुनाव लड़े। एजाज ढेबर का बड़ा भाई अनवर ढेबर ने प्रमोद दुबे के चारों तरफ अपने खुफिया आदमी लगा दिए।एजाज ढेबर को हराने के लिए सौदेबाजी का आरोप लगाने।
ढेबर बंधु घर भी घुसे, गाली गलौच भी किए (किसके इशारे पर?)संयोग ये रहा कि दोनों चुनाव जीत गए। जितने के बावजूद प्रमोद दुबे को महापौर न बना जानबूझ कर सभापति बनाया गया ताकि महापौर के नीचे होने का अहसास बना रहे। साइंस कॉलेज के ग्राउंड में कोई आयोजन था। कका वही मौजूद थे। किसी ने बताया कि प्रमोद दुबे भी चुनाव जीते है तो कका ने सार्वजनिक रूप से प्रमोद दुबे को जीत की मिठाई खिलाने के बजाय भद्दी टिप्पणी करते हुए मिठाई प्रमोद दुबे के मुंह में ठूंस दिया था।
इतना ही नहीं, धर्म सभा के आयोजन में कालीचरण के खिलाफ एफ आई आर कराने का दबाव भी प्रमोद दुबे पर डाला गया। एक साधु के खिलाफ आयोजन समिति के अध्यक्ष के बजाय प्रमोद दुबे को क्यों चुना गया, नगर के प्रथम नागरिक एजाज ढेबर ने एफ आई आर क्यों नहीं लिखवाई? समझदारो को इशारा काफी है।
आज स्थिति ये आ गई है कि प्रमोद दुबे की पत्नी दीप्ति दुबे के महापौर प्रत्याशी के रूप में नामांकन पत्र दाखिल करने के समय कका मौजूद है।पांच साल एजाज ढेबर एंड फैमिली ने भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी सहित घोटाले दर घोटाले किए है उसका खामियाजा कांग्रेस की महापौर प्रत्याशी दीप्ति दुबे के भुगतना पड़ेगा।कांग्रेस का एक गुट प्रमोद दुबे को हमेशा बलि का बकरा बनाने पर तुला हुआ है।