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पूत के पांव पलने में दिखते है

राजेश मिश्रा, महानिदेशक जेल ने अपने नियमित सेवा काल में उत्कृष्ट कार्य किए थे जिसका प्रतिफल मुख्य मंत्री विष्णु देव साय और गृह मंत्री विजय शर्मा ने दिया।राजेश मिश्रा को पुलिस विभाग के ही पंजा छाप अधिकारियो के साम दाम दण्ड भेद की सारी प्रक्रिया अपनाने के बावजूद संविदा नियुक्ति दी गई। अनेक चेहरे मुरझाए हुए है। 670 दिन याने 2 साल का समय ऐसा कार्य करने को मिला है जो राजेश मिश्रा के दीर्घ अनुभव को समाज के उस तबके के लिए है जिसे देखते ही मन में अजीब सी भावना उभर जाती है। समाज ऐसे लोगो को आरोपी और अपराधी की श्रेणी में रखता है। जेल, कारावास, कोठी, लाल गेट कैदखाना, बंदीगृह और सुधार गृह के नाम से चिन्हित इस परिसर में लोगो को रखा जाता है जहां कुछ मूल अधिकार निलंबित हो जाते है। चारदीवारी के भीतर रहने वाला व्यक्ति आरोप लगने के बाद जमानत पाते तक और अपराधी सजा पूरी होते तक इस कैद खाने में रहता है।

ऐसे लोगो को क्या सुविधा मिले इसके लिए नियम बहुत है लेकिन कितने लोग होते है जो अपनी तरफ से प्रयास करते है?इतिहास उठा कर देख ले तो जेहन में एक नाम आता है किरण बेदी का,जिन्हे बतौर ए सजा जैल का प्रभार दिया था लेकिन उन्होंने समाज के उपेक्षित लोगो के जीवन में आश्चर्य जनक परिवर्तन लाकर दिखा दिया कि संभावना कही भी जन्म लेती है,फलीभूत होती है।राजेश मिश्रा को भी जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने भी प्रयास शुरू किया है। गंगा तभी विशाल होती है जब अन्य नदियां जुड़ती है। राजेश मिश्रा ने प्रदेश की जेलों को सुधारने का कार्य प्रारंभ किया है। पीछे की मंशा में गृह मंत्री विजय शर्मा की है। राजेश मिश्रा ने अपने जेल सुधार अभियान में सभी जेल प्रभारियों से सुझाव मांगे है।

आमतौर पर हेकडीबाज़ अधिकारियो को मुगलता होता है कि वे सर्वज्ञ होते है,जानकारी से सम्पूर्ण, इस कारण सहयोग लेने या सुझाव मांगने में खुद को कमतर आंकने की भूल के चलते वे कोई नया काम नही कर पाते है। राजेश मिश्रा इनसे परे है,कार्य कुशल है, इसलिए वे सहयोग लेने में देर नहीं किए।जब उनके पास सुझाव आ जायेंगे तो उन सकारात्मक सुझाव के बल पर वे सुधार करेंगे और निश्चित रूप से उनके प्रयास रंग लायेगी। एक सुझाव ये भी है कि कुछ जेलर राजनैतिक संरक्षण का दुरुपयोग कर सरकार को बदनाम करते है ऐसे लोग भी राजेश मिश्रा के जेहन में रहे। केवल जेल को रंग रोगन करना बाहरी आवरण की सुंदरता हो सकती है लेकिन चारदीवारी के भीतर का अंतः करण बेहतर हो तो सफलता के मायने बदल जाते है। सजा काटने के बाद समाज में फिर से जुड़ाव कैसे हो,ये भी विषय है,राजेश मिश्रा कैसे इस काम को अंजाम देंगे,ये सुझाव रूप प्रश्न है।

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