नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को 2 लाख से अधिक छात्रों को पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध न करा पाने को लेकर फटकार लगाई है.दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि दिल्ली सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता में बने रहने की है और गिरफ्तारी के बावजूद इस्तीफा न देकर अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय हित के ऊपर निजी हित को प्राथमिकता दी है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह तीखी टिप्पणी की. याचिका में आरोप लगाया गया है कि नगर निगम की आपसी खींचतान के कारण एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को पाठ्य पुस्तकें नहीं मिल पाई हैं और वे टिन शेड में पढ़ाई करने को मजबूर हैं.
जब हाईकोर्ट के जज सौरभ भारद्वाज पर भी तीखी टिप्पणी
दिल्ली हाईकोर्ट ने शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज पर भी तीखी टिप्पणी की और कहा कि उन्होंने हालात को लेकर आंखें मूंद रखी हैं और घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं. कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी उस वक्त की जब दिल्ली सरकार के वकील शादान फरासत ने कहा कि उन्हें भारद्वाज से निर्देश मिले हैं कि एमसीडी की स्थायी समिति की गैरमौजूदगी में किसी उपयुक्त प्राधिकारी को शक्तियां सौंपने के लिए मुख्यमंत्री की सहमति की जरूरत होगी जो अभी हिरासत में हैं. इस दलील पर एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि छात्रों को पाठ्य पुस्तकों के बिना पढ़ने के लिए छोड़ दिया जाए.
कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह आपकी पसंद है कि आपने कहा है कि मुख्यमंत्री के हिरासत में होने के बावजूद सरकार चलती रहेगी. आप हमें उस रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जिस पर हम नहीं जाना चाहते थे. हमने अपने सामने आई जनहित याचिकाओं में कई बार यह कहा है लेकिन यह आपके प्रशासन का फैसला है. अगर आप चाहते हैं कि हम इस पर टिप्पणी करें, तो हम इस पर विचार करेंगे.
जस्टिस मनमोहन ने कहा कि वह सौरभ भारद्वाज का नाम भी ऑर्डर में शामिल करेंगे. वकील फरासत ने कहा कि एमसीडी के पास स्थायी समिति न होने का कारण यह है कि एलजी ने अवैध रूप से एल्डरमैन नियुक्त किए हैं और सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विचार कर रहा है. फरासत ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार के पास वैसे भी बहुत अधिक शक्ति नहीं है.