पिछली सरकार के श्रम दिवस में चोचलों की भरमार का दिवस हुआ करता था। छत्तीसगढ़ की असहनीय गर्मी से निजात पाने के लिए ग्रामीण अंचल में बोरे बासी का परंपरागत चलन है।इसका कोई सार्वजनीकरण सदियों से नही हुआ क्योंकि ये दिखावे का भोजन नहीं बल्कि गर्मी से बचने का आवश्यक भोजन है। रात को चांवल को भात का रूप देकर पानी में डूबा कर रख दिया जाता है। दूसरे दिन सुबह काम में जाने से पहले बोरे बासी में नमक डालकर, प्याज के टुकड़े और आचार के साथ खाकर श्रमिक शरीर को पानी की कमी से बचाने का काम कर चुका होता है। कांग्रेस की सरकार आई तो छतीसगढ़ी संस्कृति, रीति रिवाज, के प्रति जवाबदेही दिखाने लगी।पहले तो लगा कि नरवा, गरवा ,घुरुवा, बारी के लिए सरकार गंभीर है। छत्तीसगढिया खेल ओलंपिक हुआ तो बढ़िया भी लगा।
मजदूर दिवस में मुख्यमंत्री के देखा सीखी गैर छत्तीसगढी लोग भी बोरे बासी खाने का पोस्ट डालने लगे। बोरे जमीन में बैठकर ठेठ गांव के अंदाज में खाने का भोजन है लेकिन सत्ता के दलाली करने वाले आईएएस, आईपीएस अफसरों सहित एक सुपर सीएम भी डाइनिंग टेबल में बैठकर एक छोटी सी कटोरी में भात में पानी डालकर एक कटोरी खाली और एक कटोरी में प्याज मिर्ची रख कर फोटो खिंचवा कर छतीसगढ़ी बनने का स्वांग रची। किसी बर्तन में उंगली डाल लेने से खाने की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है, खाना भी पड़ता है। ऐसा ही पोस्ट बहुत सारे आई ए एस और आई पी एस अफसरों ने भी डाल कर स्वामिभक्ति का परिचय दिया था। इनमे एक परिवहन और जन संपर्क का भी अधिकारी था, जो सौम्या चौरसिया के लिए एक पत्रकार के रिसेप्शन में प्लेट सजाकर खाना परोसने वाला भी था।
इस अधिकारी के यहां ईडी घुस चुकी है अब बारी कब आयेगी ये वक्त की बात है। इस साल बोरे बासी खाने की हिम्मत न करने वाले जान रहे है कि ऐसे ही लूप लाइन में है, कही बोरे बासी खाते दिख गए तो ताजगी खत्म हो जाएगी। दूसरी तरफ, डाइनिंग टेबल में बैठ कर पोज देने वाली को पिछले सत्रह महीनो से बड़े घर में जेल की रोटी तोड़ रही है। बोरे बासी खाना तो दूर की बात हो गई है। सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस पार्टी का श्रम दिवस में बोरे बासी याद नहीं रहा। इससे ये भी स्पष्ट है कि बोरे बासी का कार्यक्रम कांग्रेस का न होकर व्यक्तिगत दबाव था जिसका समय समाप्त होते ही सब बासी हो गया है।