केंद्र सरकार ने कहा है कि ऐसी आपात स्थितियों में जहां राज्य वन विभाग के पास आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव हो, वहां अन्य सरकारी विभागों को प्राकृतिक आपदाओं के नियंत्रण के लिए जंगलों में गतिविधियां चलाने की अनुमति दी जा सकती है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मंगलवार को इस संबंध में दिशानिर्देश जारी किए, जिनमें वन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं को रोकने या प्रबंधित करने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे में बताया गया है। उत्तराखंड के मुख्य सचिव की ओर से मंत्रालय और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को पत्र लिखकर बार-बार जंगल में आग लगने की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए प्रभावी उपाय तलाशने की मांग करने के बाद ये दिशानिर्देश जारी किए गए।
पत्र में आग की स्थिति में वन कर्मचारियों को तैयार करने के लिए मॉक ड्रिल कराने का भी आह्वान किया गया था। इसके साथ ही सरकारी विभागों को वन क्षेत्रों में मृदा व जल संरक्षण कार्य करने की अनुमति देने का अनुरोध किया गया था। इस मुद्दे पर 27 अगस्त को मंत्रालय की वन सलाहकार समिति की बैठक में चर्चा की गई। मंगलवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को लिखे पत्र में मंत्रालय ने कहा कि वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 और उससे जुड़े दिशा-निर्देशों के अनुसार, आपातकालीन स्थितियों जैसे प्राकृतिक आपदाओं आदि के समय वन क्षेत्रों में कुछ वानिकी गतिविधियां की जा सकती हैं। ऐसा उस स्थिति में किया जा सकता है जहां वन्यजीवों, मानव जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता हो।
इन गतिविधियों में अग्नि रेखाएं बनाना और उनका रखरखाव करना, मृदा व जल संरक्षण के लिए संरचनाओं का निर्माण करना, जैसे चेक डैम, जल टैंक, खाइयां और पाइपलाइन आदि शामिल हैं। हालांकि, मंत्रालय ने कहा, “असाधारण परिस्थितियों और तकनीकी विशेषज्ञता की अनुपलब्धता के तहत, राज्य वन विभाग, कुशल और प्रभावी प्रारंभिक कार्य सुनिश्चित करके प्राकृतिक आपदा को रोकने के लिए, अन्य सरकारी विभागों को वन क्षेत्र में मृदा और जल संरक्षण गतिविधियों के लिए वानिकी गतिविधियों के कार्यान्वयन की अनुमति दे सकता है।” मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि केवल वन (संरक्षण व संवर्धन) अधिनियम, 1980 और केन्द्र सरकार की ओर से अनुमोदित कार्य योजना के अनुरूप ही वानिकी गतिविधियों की अनुमति है। मंत्रालय के अनुसार किसी कार्य को शुरू करने से पहले भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत राज्य वन विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है।
दिशानिर्देशों के अनुसार, गतिविधियों के डिजाइन और लेआउट के लिए प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) से अनुमोदन जरूरी है, इसके अलावे डीएफओ कार्य का पर्यवेक्षण करेंगे।मंत्रालय ने कहा कि ऐसी कार्रवाई की स्थिति में पौधों और जानवरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो झाड़ियों की छंटाई या सफाई को छोड़कर पेड़ों को काटना प्रतिबंधित रहेगा। दिशानिर्देशों के अनुसार, कार्य कराने वाला सरकारी विभाग खर्च का भार उठाएगा। दिशा-निर्देश के अनुसार वनों की कानूनी स्थिति अपरिवर्तित रहेगी और इस दौरान निर्मित कोई भी संरचना वन विभाग की ही रहेगी।