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सुप्रीम कोर्ट: तीन तलाक पर केंद्र से जवाब तलब, कानून के उल्लंघन पर दर्ज मुकदमों और आरोप-पत्रों की संख्या पूछी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तीन तलाक कानून के विरोध में दायर याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन करके जीवनसाथी को तीन तलाक देने वाले पुरुषों के खिलाफ दर्ज एफआईआर और आरोपपत्रों की संख्या की जानकारी दी जाए।

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कानून की सांविधानिकता को चुनौती देने वाली 12 याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र और अन्य पक्षों से इन याचिकाओं पर अपने लिखित दलीलें दाखिल करने को भी कहा। पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 3 और 4 के तहत लंबित कुल एफआईआर और आरोप पत्र की संख्या दाखिल करेगी। वहीं पक्षकार अपने तर्क के समर्थन में तीन पेज में लिखित प्रस्तुतियां भी दाखिल करेंगे। पीठ ने याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई 17 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में तय की है।

देश में 30 जुलाई 2019 को तीन तलाक को लेकर कानून बनाया गया था। इसके तहत तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक देना गैर कानूनी है। तीन तलाक संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान किया गया है। कानून के तहत तीन तलाक को अवैध और अमान्य घोषित किया गया है तथा इसके लिए पति को तीन साल की जेल की सजा होगी। खुद को सुन्नी विद्वानों का संघ बताने वाले केरल के जमीयतुल उलेमा ने मुस्लिम महिला अधिनियम 2019 को असांविधानिक बताते हुए याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अमान्य करार कर दिया है तो इसे अपराध घोषित नहीं किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को एक ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक को असांविधानिक करार दिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था। दो जजों ने इसे असंवैधानिक कहा था, एक जज ने पाप बताया था। इसके बाद दो जजों ने इस पर संसद को कानून बनाने को कहा था।

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