भाजपा सरकार की पहली प्रशासनिक फेरबदल में सरकार की छवि बनाने वाले विभाग में आईपीएस मयंक श्रीवास्तव की एंट्री के साथ ही दीपांशु काबरा आउट कर दिए गए। सरकार ने काबरा की जगह आईपीएस मयंक श्रीवास्तव को जनसंपर्क विभाग की बागडोर सौंपी है। मयंक फिलहाल एसडीआरएफ में डीआईजी की जिम्मेदारी निभा रहे थे। उन्होंने सेवा की शुरुआत बस्तर संभाग से की। नारायणपुर में प्रशिक्षु एएसपी रहे। बस्तर में एडिशनल एसपी रहे। इसके बाद इन्हीं दोनों जिलों में एसपी भी रहे। वे दुर्ग, बिलासपुर और कोरबा जिला के भी एसपी रह चुके हैं। वे तीन बार राजभवन में एडीसी रह चुके हैं।
वर्तमान में एसडीआरएफ के डीआईजी हैं, इस पद पर रहते उन्होंने कई बचाव और राहत के ऑपरेशनों को सफलता पूर्व अंजाम दिया। प्रदेश के अब तक के सबसे बड़ा रेस्कूय ऑपरेशन भी मयंक श्रीवास्तव के नेतृत्व में चला था। यह रेस्कूय ऑपरेशन जांजगीर में बोरवेल मे गिरे राहुल साहू नाम के बच्चे को बाहर निकालने के लिए चलाया गया था। करीब 110 घंटे चला यह ऑपरेशन सफल रहा। पूर्व जनसंर्पक आयुक्त दीपांशु काबरा का कार्यकाल पूर्व के कार्यकाल से काफी विवादित रहा।
हाउस के इशारे पर पत्रकारों को बेवजह परेशान किया गया। यहां तक कि वहां के निर्देश पर उन्हें प्रताडित किया गया। सोशल मीडिया और पोर्टल चलाने वाले लोगों के लिए एक तरह से आपातकाल था। किसी खबर पर बिना नोटिस के ही पत्रकारों को गिरफ्तार कर मीडिया को हतोत्साहित करने का काम बखूबी हुआ। कई अच्छे लोगों को भी इसका शिकार होना पड़ा। जनसंपर्क विभाग को प्लेसमेंट एजेंसी बना दिया।
निजी लोगों को महंगे में ठेके पर रखकर विभाग के धन का फिजूल खर्च किया गया। अब भी यह काम बदस्तूर जारी है। विनोद के वर्मा की एजेंसी स्पेक्ट्रम ने जनसंपर्क में करोड़ों की कमाई उनके ही निर्देशन में किया। अब भी वहां पर कई प्लेसमेंट वाले काम कर रहे हैं उन पर नए सहाब को ध्यान देने की आवश्कता है। खनिज परिवहन के मामले में उनका कितना योगदान रहा इसे ईडी ने छापा मारकर जानने की कोशिश की थी। अब सरकार को तय करना है कि वे उनका क्या उपयोग करेंगे।