सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकार को अंधविश्वास, जादू-टोने जैसी प्रथाओं को खत्म करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि समाज में व्याप्त अवैज्ञानिक कृत्यों को खत्म करने के लिए एक सख्त अंधविश्वास और जादू-टोना विरोधी कानून को लाने की जरूरत है। याचिका में कहा गया है कि अंधविश्वास और जादू टोने जैसी प्रथाएं समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। साथ ही फर्जी लोगों द्वारा निर्दोष नागरिकों के शोषण पर भी रोक लगनी चाहिए।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार द्वारा दायर याचिका में केंद्र और राज्यों को संविधान के अनुच्छेद 51ए की भावना के अनुरूप नागरिकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और सुधार की भावना विकसित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। संविधान का अनुच्छेद 51ए मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है। याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका के रूप में यह रिट याचिका दायर कर रहा है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 के तहत मिले मौलिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए अंधविश्वास और जादू-टोना को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए केंद्र और राज्यों को उचित आदेश या निर्देश देने की मांग की गई है।’
याचिका में कहा गया है, ‘समाज में मौजूद तर्कहीन विचारों की समस्या से निपटने के लिए एक सख्त अंधविश्वास और जादू-टोना विरोधी कानून की तुरंत जरूरत है। हालांकि, उन सभी को केवल कानून के बल पर खत्म नहीं किया जा सकता है। इसके लिए मानसिक परिवर्तन आवश्यक है। इस सामाजिक मुद्दे से निपटने के लिए कानून लाने का मतलब केवल आधी लड़ाई जीतना होगा।’
याचिका के अनुसार, ‘सूचना अभियानों के जरिए और समुदाय/धार्मिक नेताओं को अभियान में शामिल करके इस तरह की कुप्रथाओं को दूर करने के लिए लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की जरूरत होगी। इसमें कहा गया है कि कुछ अंधविश्वासी प्रथाएं, जो क्रूर, अमानवीय और शोषणकारी हैं, उनसे निपटने के लिए विशेष रूप से कानून बनाने की आवश्यकता है। इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि कई व्यक्ति और संगठन अंधविश्वास और जादू-टोने का उपयोग करके सामूहिक धर्मांतरण कर रहे हैं।