मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार ने कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल सहित लाखो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का दिल तोड़ दिया। मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में कर्नाटक की जीत का स्वाद फीका पड़ गया। शुक्र है कि आंध्र प्रदेश जीत गए वरना खड़गे जी से नैतिकता का तकाजा रखवाते हुए इस्तीफा ले लिया जाता और एक बार फिर से गांधी परिवार का कोई व्यक्ति अध्यक्ष बन जाता।
तीन राज्यो में हार से फेर बदल होना ही था और हुआ भी। अनेक राज्यों के प्रभारियों का प्रभार बदल दिया गया है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से निष्कासित बृहस्पति सिंह सीना ठोक कर कह सकते है कि छत्तीसगढ़ की पूर्व प्रभारी कु.शैलजा के कारण ही कांग्रेस हारी है और उनके खुले आम विरोध के कारण ही शैलजा को हटाया गया है।
छत्तीसगढ़ का प्रभार राजस्थान के सचिन पायलट को दिया गया है। कांग्रेस के महासचिवों में प्रियंका वाड्रा को उत्तर प्रदेश के प्रभार से हटा कर बिना राज्य के प्रभार के रखा गया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 403 सीट में से सिर्फ 02 सीट मिली थी। 401 सीट पर हार मिली थी। 387 प्रत्याशी जमानत बचा नही पाए थे। ज्ञात रहे छत्तीसगढ़ के भूतपूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को उत्तर प्रदेश का जिम्मा दिया गया था। उनके सलाहकार राजेश तिवारी साल भर से ज्यादा उत्तर प्रदेश में खाक छाने थे।
इस साल कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन रायपुर में हुआ था। सबसे जबदस्त आगवानी प्रियंका वाड्रा की हुई थी। ट्रको में गुलाब बिछाए गए थे। पूर्व मुख्य मंत्री भी प्रियंका वाड्रा को सम्मान देने में कोई कसर नहीं रखी थी। इस कारण उम्मीद बनी थी कि प्रियंका वाड्रा को उत्तर प्रदेश के प्रभार से मुक्त किया जायेगा तो कम से कम छत्तीसगढ़ जरूर मिलना था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता से केवल 11 सीट कम है याने 35 सीट पर जीते हुए है।
राजनीति के पंडितो का मानना है कि लोक सभा चुनाव के मद्दे नज़र प्रियंका वाड्रा को किसी राज्य का प्रभार नहीं दिया गया है। भाजपा हिंदी पट्टी में बेहतर स्थिति में है और पूरा जोर भी हिंदी भाषी राज्यों में है ऐसे में अगर परिणाम कांग्रेस के पक्ष में नहीं आते तो कु.शैलजा कौन बनेगा। जो भी हो कांग्रेस में गांधी परिवार सुरक्षात्मक तरीके से नीति बना रहा है क्योंकि इंडिया गठबंधन में भी अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम बढ़ा कर राहुल गांधी को पीछे करने या गांधी परिवार को सामने न आने देने की चाल चल चुके है।