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उपेक्षा और अपेक्षा

छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग में स्थापना के बाद से मुख्यालय के भीतर और बाहर की गुटीय राजनीति से हर कोई वाकिफ है। मुख्यालय वाले जिन्हे नहीं चाहते है उन्हे जेल, आर्थिक अपराध अनुसंधान ,फोरेंसिक लैब जैसे जगहों पर रख कर अपनी तूती बोलवाना चाहते है। ये लोग भूल जाते है कि कोई विभाग कमतर नहीं होता है। व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है कि उसकी कार्य प्रणाली कैसी होती है। आमतौर पर सरकारी विभाग लकीर के फकीर तर्ज पर चलते है। बदलाव से कोफ्त महसूस होती है। परंपरा का वास्ता देकर नवीन कार्य को आलोचना की दृष्टि से देखा जाना कोई नई बात नही है।

राजेश मिश्रा को पुलिस विभाग का भ्रष्ट गुट जो कांग्रेस कार्यकाल में दलाल बन गए थे उन्होंने लक्ष्मी नारायण के दम पर पूरा जोर लगाया था कि राजेश मिश्रा किसी भी हाल में सेवा में रहते संविदा न पाए लेकिन परिवहन और जनसंपर्क, सहित पूर्व के आर्थिक अपराध शाखा के प्रमुख सहित कुछ दागदार लोगो की मेहनत पर पानी फिर गया राजेश मिश्रा को विशेष कर्तव्य अधिकारी के साथ साथ राज्य न्यायालायिक पुलिस प्रयोग शाला सहित महनिदेशक जेल का भी प्रभार देकर कद बढ़ाया गया है।

राजेश मिश्रा 2 फरवरी 2026 तक महानिदेशक रहेंगे। भविष्य में उनको अन्य जिम्मेदारी भी मिलेगी। राजेश मिश्रा के लिए छत्तीसगढ़ के जेल चुनौती है क्योंकि अनेक जेल के भीतर से बाहर के दुनिया के अपराधी नियंत्रित होते है।जबरिया धन उगाही की बात किसी से छिपी नहीं है। इसके अलावा भविष्य में कांग्रेस शासनकाल में घोटाला करने वाले बड़े अधिकारी व्यवसाइयो सहित आपराधिक षड्यंत्र करने वाले भीतर है और आने वाले समय में और भी आयेंगे। जेल के भीतर मानव अधिकार का उल्लंघन न हो और कुछ लोग सुविधाभोगी न हो ये कार्य है। जेल को किरण बेदी ने सुधार गृह में बदल दिया था।अब राजेश मिश्रा की बारी है। शुभकामनाए

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