मध्यप्रदेश स्थित कान्हा टाइगर रिजर्व से सटे भोरमदेव में एक बाघ मवेशी का शिकार करते ट्रैप कैमरा में कैद हुआ है। अफसरों के मुताबिक भोरमदेव तथा आस-पास के एरिया में तीन से चार बाघों की मूवमेंट होने के बारे में उन्हें जानकारी मिली है। इस वजह से पूरे इलाके को संवेदनशील घोषित कर क्षेत्र में मॉनिटरिंग तेज कर दी गई है। इसके साथ ही जिस क्षेत्र में बाघ दिखा है, उस क्षेत्र में ग्रामीणों को मवेशी चराने जाने पर रोक लगा दी गई है।
गौरतलब है कि राज्य बनने के पूर्व कान्हा टाइगर रिजर्व का हिस्सा रहे भोरमदेव में कान्हा से बाघों की पूर्व में भी आवाजाही होती रही है। कान्हा में बाघों की संख्या बढ़ने के बाद वहां के बाघ भोरमदेव होते हुए अचानकमार टाइगर रिजर्व तक पहुंच रहे हैं। कान्हा के मादा गर्भवती बाघ शावकों को जन्म देने सुरक्षित जगह की तलाश में अचानकमार में आते रहते हैं। इसके चलते अचानकमार में भी बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है।
औसतन साढ़े 15 किलोमीटर में एक बाघ
कान्हा में वर्तमान में 129 बाघ होने की पुष्टि एनटीसीए ने की है। कान्हा में कोर तथा बफर एरिया का कुल क्षेत्रफल दो हजार किलोमीटर है, जिनमें कोर का क्षेत्रफल 940 किलोमीटर है। इस लिहाज से कान्हा में साढ़े 15 किलोमीटर में एक बाघ की मौजूदगी है। एक बाघ का टेरिटरी 50 से 60 वर्ग किलोमीटर का रहता है। इसके चलते बाघों में भोजन के लिए द्वंद्व की स्थिति निर्मित होती है, जो ताकतवर बाघ होते हैं वे किसी दूसरे बाघ को अपने टेरिटरी में नहीं आने देते।
प्रे-बेस की सुगमता के चलते प्रवेश कर रहे बाघ
वन अफसरों के मुताबिक अचानकमार तथा भोरमदेव में बाघों की मौजूदगी जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है। इसके चलते कान्हा के बाघ अचानकमार तथा भोरमदेव में भोजन तथा पानी की तलाश में पहुंचते हैं। कान्हा से आने वाले बाघों को यहां पर्याप्त मात्रा में पानी के साथ शिकार की उपलब्धता होती है। इस वजह से भी कान्हा के बाघ यहां पहुंच रहे।
बाघ की सुरक्षा के लिए आज होगी बैठक
पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सुधीर अग्रवाल के मुताबिक भोरमदेव में बाघों की मौजूदगी को देखते हुए कवर्धा वनमंडल के अफसरों की एक बैठक बुलाई गई है। साथ ही अफसरों को कवर्धा सहित भोरमदेव के संवेदनशील इलाकों में जहां बाघों की मौजूदगी का अनुमान है, उन स्थानों में बाघों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रैपिड एक्शन टीम को गश्त तेज करने के निर्देश दिए गए हैं।
गुरुघासीदास, संजय दुबरी से गुलजार
भोरमदेव तथा गुरुघासीदास नेशनल पार्क की पहचान छत्तीसगढ़ के वन के रूप में है, लेकिन वास्तव में दोनों वनक्षेत्र का जंगल कान्हा तथा संजय दुबरी नेशनल पार्क का पार्ट है। भोरमदेव तथा अचानकमार में जहां कान्हा के बाघों की आवाजाही होती है, इसी तरह से गुरुघासीदास में संजय दुबारी नेशनल पार्क के बाघों की आवाजाही होती है।