नई दिल्ली. पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ों में ऊंचाई पर बनी एक सुरंग भारत और चीन के बीच बढ़ते सीमा विवाद का नवीनतम मुद्दा बन गई है. सेला सुरंग का उद्घाटन इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. इसको भारत में इंजीनियरिंग की एक उपलब्धि के रूप में सराहा गया है. लगभग 13,000 फीट (3,900 मीटर) की ऊंचाई पर हिमालय के बीच से इसे बनाया गया है. यह भारतीय सेना के लिए एक वरदान है, जो चीन के साथ तनावपूर्ण सीमा तक हर मौसम में तेज पहुंच को सक्षम बनाता है. इसने इसने बीजिंग का ध्यान आकर्षित किया है.
चीन का भारत के साथ 2,100 मील (3,379 किलोमीटर) की सीमा पर लंबे समय से चल रहे विवाद के कारण हाल के वर्षों में दो परमाणु-संपन्न ताकतों के बीच टकराव का माहौल बना हुआ है. इसमें 2020 में एक हिंसक झड़प भी शामिल है. जब सीमा के पश्चिमी हिस्सों में अक्साई चिन-लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच आमने-सामने की लड़ाई में कम से कम 20 भारतीय और चार चीनी सैनिकों की मौत हो गई थी. सीमा को लेकर विवाद के कारण दशकों पहले 1962 में दोनों देशों के बीच जंग भी हुई थी. सीमा पर विवाद के साथ ही चीन भारत के राज्य अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करता है, जहां सुरंग को बनाया गया है. जबकि यह इलाका लंबे समय से भारत का एक राज्य है.
चीन का बेतुका दावा
हाल के दिनों में चीनी अधिकारियों ने सुरंग परियोजना और पीएम मोदी की राज्य यात्रा की आलोचना की है. चीन ने भारत पर सीमा पर शांति को कमजोर करने के लिए कदम उठाने का आरोप लगाया है. चीन के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने पिछले हफ्ते फिर अपनी कारगुजारी का नमूना पेश करते हुए कहा कि हमें भारतीय पक्ष से सीमा के सवाल को जटिल बनाने वाली किसी भी कार्रवाई को रोकने की जरूरत है. चीनी सेना अत्यधिक सतर्क रहती है और राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की दृढ़ता से रक्षा करेगी. उसने कहा कि दक्षिण तिब्बत का तात्पर्य अरुणाचल प्रदेश से है.
भारत का पलटवार
भारत ने भी जवाबी हमला करते हुए बीजिंग के ‘बेतुके दावों’ की आलोचना की और कहा कि यह क्षेत्र ‘हमेशा भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है और रहेगा.’ अमेरिकी विदेश विभाग ने भी एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान अरुणाचल प्रदेश पर भारत की संप्रभुता का समर्थन किया और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) या वास्तविक सीमा के पार ‘घुसपैठ या अतिक्रमण से क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयास’ पर कड़ा विरोध जताया. बीजिंग ने भी इस पर पलटवार करते हुए वाशिंगटन पर ‘अपने स्वार्थी भू-राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए अन्य देशों के संघर्षों को भड़काने का आरोप लगाया.’