जय-वीरू की कहानी में फिर एक नया मोड़ जल्द दिखने की चर्चा चल रही है। सत्ता सुख भोगने के बाद जय अपने काम पर लगे हैं। अब वीरू ने भी मौके का फायदा उठाते हुए पार्टी चीफ का पद संभालने की सहमति दे दी है। ऐसे में जय-वीरू की गाड़ी फिर चल पड़ेगी। वे मुख्यमंत्री भले ना बन पाए पर नंबर दो में रहकर हाईकमान के चहेते बने रहे। उनकी पाक छवि का असर संगठन पर पड़ेगा यह भराेसा उपर बैठे लोगों को भी है। पुराने मामले से सबक लेते हुए वीरू इस बार स्टेयरिंग अपने हाथ में ही रखने का प्रयास करेंगे। उनकी गाड़ी का जो हिस्सा अलग हो गया उसे अब जोड़ने की भूल न कर वे अपने तरीके से चलेंगे।
आखिर बंसती के चक्कर में जय को अपनी सीट खोकर पूरी करनी पडी। अब हाईकमान ने भी यह तय कर लिया है कि जय के कारिदों को उनके किए का भान कराया जाए। बाहर का रास्ता कब दिखाया जाएगा यह पता नहीं, लेकिन वीरू अपनी आदत के मुताबिक अपनी बात का खुलासा पहले ही कर ज के खेमे में हलचल मचा दी है। देखना यह है कि पहले ढाई-ढाई के फेर में पूरे पांच साल हाईकमान ने उन्हें नचाया। अब उसी की ओर से प्रस्ताव पर सहमति देना वीरू के लिए कितना फायदे मंद होगा आने वाला समय बताएगा।
फिलहाल वीरू को इस बात का संतोष है कि वे पूरी संगठन के बागडोर संभालने तैयार हैं। छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच वीरू की छवि अच्छी है। उनके आसपास के लोगों ने जो किया उसे लेकर लोग नाराज हैं। उन्होंने अपने काम के जरिए अपने क्षेत्र के लोगों का दिल जीता। भले मामूली अंतर से चुनाव हारने और पारिवारिेक कारणों से कुछ दिनों से राजनीति से दूर रहे, पर अब उनका समय आने वाला है। हाईकमान ने भी इस बात का देखा कि छत्तीसगढ़ में जय के कारनामों की वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। नुकसान की भरपाई ईमानदारी से किए गए प्रयासों से करने वीरू का साथ मिलना अच्छा संकेत हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि जो भी जिम्मेदारी मिलेगी उसे निभाएंगे। देखना होगा कि वीरू की आस कब तक पूरी होती है।