आमतौर पर माना जाता है कि जिस अधिकारी के ऊपर एक पार्टी का ठप्पा लग जाता है उससे विरोधी पार्टी चांदी की थाली में खाना नहीं परोसती।इससे परे है अजय शंकर कन्नौजे, सरकार कांग्रेस की रहे या भाजपा की चांदी काटने के लिए कन्नौजे एक न एक सहारा ऐसा खोज लेते है कि उनका काम बन जाता है। अमरजीत भगत के द्वारा उपकृत अजय शंकर कन्नौजे को आपसी लड़ाई के चलते स्टेट वेयर हाउसिंग में भेजा गया। अरुण वोरा को खूब पट्टी पढ़ाए, गोदाम बनवाने के नाम पर खूब कमीशन बाजी हुई।घोटाला हुआ।
भूपेश सरकार की बुनियाद को चरने वालो में कन्नौजे की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। खाद्य विभाग में खूब राशन घोटाला करवाए, नान में घटिया चांवल पास करवाए। खूब इत्र महका, कन्नौज का कन्नौजे है, अब फिर उसी विभाग में पहुंच गया जहां दवाइयों के सैंपल लेकर करोड़ो वसूले जाते है। यहां प्रदेश के कितने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खाली पड़े है, डॉक्टरों का अभाव है।आदिवासी अंचल में लोग डाक्टर के अभाव में मर रहे है लेकिन कन्नौजे को फील्ड में जाना ही नहीं है।सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, मुख्यालय रायपुर ही रहेगा। न मुख्यमंत्री में दम है न स्वास्थ्य मंत्री में।