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Andhra Pradesh: ‘समलैंगिक जोड़ों को साथ रहने का अधिकार, माता-पिता न करें हस्तक्षेप’, हाईकोर्ट का अहम आदेश

समलैंगिक जोड़ों के लिए एक अच्छी खबर है। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने साफ-साफ कह दिया है कि जोड़े को साथ रहने का अधिकार है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि समलैंगिकों को अपना साथी चुनने की स्वतंत्रता है। न्यायमूर्ति आर रघुनंदन राव और न्यायमूर्ति के महेश्वर राव की पीठ कविता (बदला हुआ नाम) द्वारा दायर बंदी प्रक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दरअसल, याचिका में आरोप लगाया गया था कि उनकी साथी ललिता (बदला हुआ नाम) को उनके पिता ने उसकी इच्छा के खिलाफ नरसीपट्टनम में स्थित घर पर कैद करके रखा है।

इस पर अदालत ने मंगलवार को ललिता के माता-पिता को निर्देश दिया कि वे जोड़े के रिश्ते में हस्तक्षेप न करें क्योंकि उनकी बेटी बालिग है और वह अपने फैसले खुद ले सकती है। बता दें, जोड़ा पिछले एक साल से विजयवाड़ा में रह रहा है। कविता ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस पर जब पुलिस ने ललिता के बारे में जानकारी जुटाई तो वह अपने पिता के घर मिली, जहां से उसे बचा लिया गया। उसके बाद, उसे 15 दिनों के लिए एक कल्याण गृह में रखा गया था, हालांकि उसने पुलिस से गुहार लगाई कि वह एक बालिग है और अपने साथी के साथ रहना चाहती है।

इसके अलावा, ललिता ने अपने पिता के खिलाफ सितंबर में शिकायत दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि उनके माता-पिता परेशान कर रहे हैं। पुलिस के दखल देने के बाद, ललिता विजयवाड़ा वापस आ गई और काम पर जाने लगीं। वह अक्सर अपने साथी से मिलती थीं। हालांकि, ललिता के पिता एक बार फिर उसके घर आए और जबरन गाड़ी में बैठाकर ले गए। कविता ने अपनी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में आरोप लगाया कि उन्होंने ललिता को गैरकानूनी तरीके से अपनी हिरासत में रखा हुआ है। वहीं, पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी को कविता और उसके परिवार के सदस्यों ने अगवा कर लिया है।

कविता के वकील जदा श्रवण कुमार ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि बंदी ने याचिकाकर्ता के माता-पिता के साझा घर में याचिकाकर्ता के साथ रहने के लिए अपनी स्पष्ट सहमति व्यक्त की है और वह कभी भी अपने माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के पास वापस नहीं जाना चाहेगी। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि ललिता ने यह भी इच्छा व्यक्त की थी कि अगर उसे याचिकाकर्ता के साथ रहने की अनुमति दी जाए तो वह अपने माता-पिता के खिलाफ दर्ज शिकायत वापस ले लेगी। पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए यह भी कहा कि ललिता के परिवार के सदस्यों के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाए क्योंकि वह शिकायत वापस लेना चाहती हैं।

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