हमारे देश में तीन स्तरीय न्याय व्यवस्था है।सबसे निचले स्तर पर जिला न्यायालय है। इसी स्तर पर विशेष जांच एजेंसियों सीबीआई, ईडी आदि की भी विशेष न्यायालय है। इनके द्वारा किए गए निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जाती है। उच्च न्यायालय में भी राहत न मिले तो उच्चतम न्यायालय ही उम्मीद का अंतिम दरवाजा होता है।
छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोयला घोटाले में डेढ़ दर्जन से अधिक अधिकारी, कारोबारी आरसी तीन खेप में सितंबर और दिसंबर 2022और जुलाई 2023से क्रमश सेंट्रल पुरुष और महिला जेल रायपुर में बंद है। ये सभी लोग छत्तीसगढ़ विधान सभा चुनाव 2023 के नतीजे आने से पहले तक सेंट्रल जेल में केवल चारदीवारी के बाहर न आने के अलावा सारे सुख सुविधा का भोग कर रहे थे। खुली जेल बन गई थी इनके लिए। मनपसंद नाश्ता, चाय काफी, शाकाहारी मांसाहारी खाना, मोबाइल, टीवी, वातानुकूलित हवा, डनलप के गद्दे तकिया, धुली हुई चादर, सब कुछ था। मल उत्सर्जन के लिए इटेलियन कमोड ।मस्ती से जिंदगी गुजर रही थी। सरकार बदल गई। इधर नतीजे निकले उधर जेल के अधिकारियो की हवा निकली। जब तक भाजपा के बहुमत के परिणाम आए, सारी सुविधा हटा दी गई।
जेल के भीतर रह कर स्वास्थ्य खराबी की कहानी भी शुरू थी।बारी बारी जेल अस्पताल में भर्ती होना और फिर वहा से मेकाहारा या जिला अस्पताल में भर्ती होकर जबरन बीमार होने का खेल जारी था। जेल से आरोपी के बाहर निकलने के लिए सबसे कारगर उपाय स्वास्थ्य खराबी है। बड़े बड़े नामवर वकीलों के माध्यम से विशेष अदालत रायपुर में पिछली सरकार में सुपर सीएम का दर्जा पाई सौम्या चौरसिया की जमानत याचिका पिछले साल खारिज हो चुकी थी, उसके बाद उच्च न्यायालय बिलासपुर और उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली ने भी ईडी के द्वारा दिए गए जवाब से कि इस महिला को जमानत न दिया जाए क्योंकि ये सरकारी पद पर रहते हुए न केवल पद का दुरुपयोग की है बल्कि मुख्य सूत्रधार भी है जो साक्ष्य को प्रभावित कर सकती है।
पहले बार तीन स्तरीय न्याय व्यवस्था से खाली हाथ लौटी सौम्या चौरसिया अवसाद की स्थिति में आ रही है।इसका कारण जेल के भीतर आम बंदी के समान20- 30 महिला केदियो के साथ बैरक में रहना है, जमीन में सोना है, बिना दरवाजे के भारतीय पद्धति के संडास में जाना है।सुबह दोपहर और शाम को निर्धारित समय में बैरक से बाहर घूमना है। दो बार पनियल चाशनी चाय पीना, कच्ची रोटी, मोटा चांवल, कीड़े युक्त सब्जी और पीला पानी वाला दाल खाना , यही जिंदगी है। सवा साल के कारावास में बीते चार महीने बहुत ही पीड़ादायक रहा है। जेल के भीतर गाली गलौच, मारपीट, हंगामा के चलते सौम्या चौरसिया को किसी भी कीमत में बाहर आने की पड़ गई है। विशेष अदालत से कल सौम्या चौरसिया की जमानत अर्जी खारिज हो गई है।
जमानत पाने का कारण जुड़वा बच्चों का देखभाल बताया गया था। अब इसी मुद्दे को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका लगेगी और खुदा न खास्ता यहां से भी जमानत याचिका खारिज होती है तो दोबारा उच्चतम न्यायालय की शरण में जाना होगा। इस प्रक्रिया में पिछले अनुभव के आधार पर कम से कम एक साल लग सकता है। भैंस का पानी में जाना इसे ही कहते है। महानदी भवन और मुख्य मंत्री के रायपुर और भिलाई निवास की मुख्य कर्ता धर्ता का ये हाल है कि छोटी छोटी चीजों के लिए मोहताज है, जमानत के लिए भी