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उपसंचालक अभियोजन मिथिलेश वर्मा पर लगे गंभीर आरोप, न्यायलयीन कार्रवाही को धता और गुनहगारों को बचाने का षणयंत्र

रायपुर : महासमुंद में पदस्थ तत्कालीन जिला अभियोजन अधिकारी मिथलेश वर्मा के खिलाफ जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ भ्रष्टाचार रोकथाम प्रकोष्ठ सदस्य सुखसागर सिंह पैकरा ने गंभीर आरोप लगाते हुए छतीसगढ़ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश , मुख्य सचिव , डीजीपी सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र लिखकर मामले की जांच कराने की मांग की है .

ज्ञातव्य हो कि सुखसागर पैकरा ने मामले की शिकायत 7 बिंदुओं में करते हुए पत्र लिखा जिसमे बताया कि मिथिलेश कुमार वर्मा द्वारा लम्बे अंतराल से विशेष न्यायालय, एसीबी, रायपुर में पदस्थ रहकर अपराधियों के साथ साठगांठ बना ली जबकि उक्त सारे संवेदनशील मामले न्यायालय में विचाराधीन है । जिसमे राज्य का बहुचर्चित नान घोटाला है जिसमे लगभग 36 हजार करोड़ की राज्य को छति पहुँचाई गई . महादेव एप्प घोटाला , हजारो करोड़ का शराब घोटाला , हजारो करोड़ कोल लेवी स्कैम घोटाला यह सारे मामले न्यायालय में विचाराधीन है उक्त मामले में सर्वविदित है कि नान घोटाले का मास्टर माइंड अनिल टुटेजा को बचाने के लिए इस उपसंचालक मिथलेश वर्मा द्वारा अनेको महत्वपूर्ण भौतिक साक्ष्यों को एक्जिक्यूट नही करवाया गया और संरक्षण देने का प्रयास किया जा रहा है .

इसी प्रकार जेल में बंद अन्य घोटालों के आरोपी चन्द्रभूषण वर्मा , सौम्या चौरसिया , सूर्यकांत तिवारी आदि को भी इस अधिकारी द्वारा बचाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है . जिसके एवज में इसके द्वारा आरोपियों से मोटी रकम प्रत्येक पेशी में ली जाती है। उक्त अधिकारी तत्कालीन मुख्यमंत्री का अत्यधिक विश्वासपात्र माना जाता है . इसके खिलाफ 02 विभागीय जांच पूर्व से भी प्रचलित है . शासन स्तर पर पैसे देकर इसके द्वारा उक्त विभागीय जांचों को नस्तीबद्ध करवाने का प्रयास भी किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि इस तरह की गड़बड़ी करने की प्रवृति मिथलेश वर्मा की हमेशा से रही है इसका दस्तावेजी साक्ष्य यह है कि मिथलेश वर्मा द्वारा जिला अभियोजन अधिकारी महासमुंद के कार्यकाल में थाना सराईपाली के अपराध कमांक 194/ 2011 में सम्पूर्ण साक्ष्य संकलित कराये बिना अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया । इसी प्रकार इसके द्वारा सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी सरायपाली से मिली भगत कर अपराध क्रमांक 162/ 2014 में प्रकरण के महत्वपूर्ण साक्षियों का परीक्षण कराये बिना तथा जप्तशुदा मूल दस्तावेज एवं हस्तलिपि विशेषज्ञ का रिपोर्ट पेश कराये बिना अभियोजन साक्ष्य का अवसर समाप्त किया गया है। इसके फलस्वरूप गुनाहगारों को लाभ दिलवाकर पीड़ितों ‘को न्याय से वंचित कराया गया .

मिथलेश कुमार वर्मा के कदाचरण की एक झलक महासमुन्द के अपराध क्रमांक 396/ 14 में मिलती है जिसे इनका कदाचरण की प्रवृति की विशेषज्ञ साक्ष्य को नजरअंदाज करते दस्तावेजी पुष्टि होती है। उक्त अपराध में हुए 302 भादवि जैसे जघन्य अपराध को छिपाया जाकर अभियोग पत्र धारा 306, 384, 32, 147 भादवि के अंतर्गत अग्रेषित किया गया। उक्त आरोप के अलावा अन्य अनेकों आरोप इनके विरूद्ध विचाराधीन है।

महत्वपूर्ण बात है कि मिथलेश कुमार वर्मा वर्तमान में ऐसे स्थान पर पदस्थ हैं जहाँ छतीसगढ़ राज्य के राज्य गठन के उपरांत से लेकर अब तक के सर्वाधिक बडे घोटाले जैसे नान घोटाला, कोल घोटाला, आबकारी घोटाला, डी.एम.एफ. घोटाला जैसे प्रकरण आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत किये जा रहे हैं आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा निरंतर छापेमारी की कार्यवाही की जा रही है तथा न्यायालय में आरोपियों को प्रस्तुत किया जाता है . मिथलेश कुमार वर्मा संवेदनशील मामलों के समस्त आरोपियों के संपर्क में रहते हैं एवं उनसे अपने स्वार्थहितों की पूर्ति करते हुए प्रकरण को प्रभावित करने का प्रयास करते है जेल में बंद तथा जेल से बाहर आरोपियों के द्वारा नियमित मासिक रकम इन्हें पहुचाई जाती है।

इन गंभीर आरोपो को देखते हुए उपसंचालक अभियोजन मिथलेश वर्मा को तत्काल बर्खास्त कर इनके खिलाफ की गई सातो बिंदुओं की जांच उच्च स्तर पर कराया जाना चाहिए ताकि न्यायालय जैसे संवेदनशील मामलों में गड़बड़ी को रोका जा सके .

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