रायपुर। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) में दवा खरीदी घोटाले की जांच तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉपोरेशन में करोड़ों रुपये के घोटाले में आईएएस अधिकारी भी लपेटे में आएंगे हैं। मामले में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की संलिप्तता के साक्ष्य भी मिले हैं।
स्वास्थ्य विभाग में हुए इस घोटाले में कांग्रेस सरकार के समय हुए के तार और भी लोगों से जुड़े हो सकते हैं। मामले में न जाने और मकतनक मोक्षीत सामने आएंगे। ईओडब्ल्यू को पूरे मामले की तहकीकात करने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और उनके स्टॉफ से जुड़े कुछ अहम लोगों पर भी नजर रखनी चाहिए।
यहां यह बता दें कि स्वास्थ्य विभाग टीएस को मिलने के बाद उनके ओएसडी रहे ‘बाबू’ का भाई सीजीएमएससी में प्रतिनियुक्ति पर रहा। कांग्रेस सरकार के जाने के पहले ही यहां से मूल विभाग में वापस चला गया। उस समय सीजीएमएससी में उनकी तूती बोलती थी। कई दवा कंपनियों के डील भी बंगले से होते रहे थे। आपको बता दे कि करोना के समय कई तरह के उपकरण और दवाईयों की सप्लाई हुई।
हालांकि आपदा का समय था, फिर भी लोगों ने इस अवसर का जमकर लाभ उठाया। कोलकाता के द्वारा रिजेक्ट किए गए किट को छत्तीसगढ़ में सीजीएमएससी के अफसरों ने बिना सोचे समझे खरीदी की। मामले में कई सवाल उस समय भी उठे थे। आखिर विधानसभा चुनाव के पहले ही ओव्हर रेट में इतनी अधिक मात्रा में दवा खरीदी की अनुमति किसके माध्य से दी गई। किन-किन कंपिनयों ने सप्लाई किया, उनके पूरे डिटेल्स निकाले जाएं। हो सकता है उनके से कोई और मोक्षित सामने आ जाए।

आडिट आब्जेक्शन में पकड़ी गई गड़बड़ी
स्वास्थ्य विभाग में 400 करोड़ से अधिक का घोटाला महज दो साल की ‘ऑडिट ऑब्जर्वेशन रिपोर्ट में सामने आया था। ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक करोड़ों की गड़बड़ी की गई है। इस पूरे मामले को लेकर 660 करोड़ रुपए के गोल-माल को लेकर भारतीय लेखा एंव लेखापरीक्षा विभाग के प्रिंसिपल अकाउंटेंट जनरल (ऑडिट) आईएएस यशवंत कुमार ने एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार पिंगआ को पत्र लिखा था।
लेखा परीक्षा की टीम की ओर से सीजीएमएससी की सप्लाई दवा और उपकरण को लेकर वित्त वर्ष 2022-24 और 2023-24 के दस्तावेज को खंगाला गया तो कंपनी ने बिना बजट आवंटन के 660 करोड़ रुपये की खरीदी की थी, जिसे ऑडिट टीम ने पकड़ लिया था।
दो साल में आवश्यकता से अधिक खरीदी
ऑडिट में पाया गया है कि पिछले दो सालों में आवश्यकता से ज्यादा खरीदे केमिकल और उपकरण को खपाने चक्कर में नियम कानून को भी दरकिनार किया गया। जिस हॉस्पिटल में जिस केमिकल और मशीन की जरूरत नहीं वहां भी सप्लाई कर दिया गया। प्रदेश के 776 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों सप्लाई की गई, जिनमें से 350 से अधिक ही प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ऐसे हैं, जिसमें कोई तकनीकी, जनशक्ति और भंडारण सुविधा उपलब्ध ही नहीं थी। ऑडिट टीम के अनुसार डीएचएस ने स्वास्थ्य देखभाल की सुविधाओं में बेसलाइन सर्वेक्षण और अंतर विश्लेषण किए बिना ही उपकरणों और रीएजेंट मांग पत्र जारी किया था।
विभागीय मंत्री की जिम्मेदारी तय हो
वैसे शराब घोटाला इन दिनों काफी चर्चित है। यहां पर विभागीय मंत्री को भी मामले में जिम्मेदार मानते हुए लपेटा गया है। आखिर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा अस्पतालों की मांग के अनुरूप सीजीएमएससी से दवा और उपकरण खरीदी का नियम है। संबंधित अस्पतालों को डीएचएस के माध्यम से अपनी आवश्कता के अनुरूप खरीदी की डिमांड आने पर खरीदी की जाती है। ऐसे में दवा घोटाले के मामले में विभाग प्रमुख से भी पूछना चाहिए कि ऐसी बोगस उपकरणों और दवाओं की महंगी खरीदी करने के पीछे और कोई तो नहीं। विभाग प्रमुख विभाग में नियंत्रण न रख सके तो ऐसे घोटाले सामने आएंगे ही।