चंदनकहां चली गई रे गुंजा बिन फेरे हम तेरे गीतकार का भी अपनी मौज होती है लिखेंगे, जन्म जन्म का साथ है निभाने को, सौ सौ बार हमने जन्म लिया लिए और फिल्म दिया जाता है औरों पर, फिर भी मौज है अपनी कलम नहीं तोड़ेंगे बिन फेरे हम तेरे अभी हुजूर साहब का हुकुम का सिम ही नहीं खुल रहा शायद गुंजा की आवाज नदिया का पर नहीं हुआ नहीं तो स्वर लहरी अपनी निनाद देता गुंजा रे,, चंदन चंदन आओ मिल जाये हम तुम फुलों की तरह, परंतु शायद अभी लिपट जाने का सुखद अवसर ही नहीं बन रहा है कहां से यह कमबख्त दो पत्रकार सुनील और नीलेश आके हमारा प्यार बर्बाद कर दिए.
आज अलग अलग रह रहे लोगो का भी वेलेंटाइन डे है। वेलेंटाइन डे, केवल प्रेमी प्रेमिकाओं के रिश्तों का दिन नही होता है बल्कि ऐसे रिश्तों का भी दिन होता है जिनके बारे में काना फूसी होती है। सच क्या होता है इससे किसी को कोई सरोकार नहीं होता। सालो पहले ताराचंद बड़जात्या की फिल्म नदियां के पार भारतीय वेलेंटाइन गुरु के मंशा के अनुरूप देशी प्रेम का फिल्मांकन था। गुंजा, इस फिल्म की नायिका थी और चंदन(लगाने वाला नहीं) नायक था। फिल्म आई चली गई , आज गुंजा कहां है और चंदन कहां है इसकी समीक्षा हो रही है। चंदन की लगी लगाई नौकरी छूट गई है, उसके जग कोई और को नौकरी मिल गई है। चंदन के बहुत सारे साथियों को चंदन छोड़ दिया था, अभी बहुत सारे साथियों ने चंदन को छोड़ दिया है। चंदन के घर के बड़े बुजुर्ग भी चंदन पर कम भरोसा कर रहे है। पहले तो चंदन है तो ही भरोसा था। भरोसा गुंजा का भी चंदन से उठ गया है। चंदन के भरोसे चंदन लगा रही थी, चूना लग गया। बिन फेरे हम तेरे का गीत गुंजायमान हो रहा था.
जन्म जन्म का साथ है निभाने को, सौ सौ बार हमने जन्म लिया लिए गाना गाया जाने वाला था।आओ मिल जाए हम सुमन और सुगंध की तरह का वातावरण नही बन पाया। आज के हालात ये हैं कि गुंजा करोड़ो के घर में रह रही है। जो दो बेर खाती थी वो केवल दो बेर खा रही है। न दिन का चैन है और न रात का करार। महंगी पड़ गई कोयले की दलाली, मुंह काला हो रहा है और वजन तनाव के चलते बढ़ रहा है। आए दिनों अभिनय करना पड़ रहा है कि तबियत नाशाद है। गुंजा गाना गा रही है जब तक पूरे न हो फेरे साथ तब तक दुल्हन नही बिहाती। चंदन गा रहा है जोगी ही हमे मिला दो। दो पीड़ित कलमकार गा रहे है मन भरमाए नैना बांधे ये डगरिया। बड़ा कष्ट बा।