प्रदेश के राशन दुकानदार पांच दिन तक अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर रहे। हड़ताल पर खाद्य विभाग के अधिकारी भी थे।अधिकारियों को खाद्य मंत्री दयाल दास बघेल का फोन आया।मांगे पूरी करने का आश्वासन भी मिला। अधिकारी वापस काम पर आ गए।राशन दुकान वाले हड़ताल पर ही रहे। अधिकारी और राशन दुकानदारो को हड़ताल से पहले वार्ता के लिए संचालक ने लिखित रूप से सूचना दे कर आमंत्रित किया था। एन मौके पर संचालक बैठक में नही आए। जिस अधिकारी ने अधिकारियो और राशन दुकानदारो को हड़ताल के उकसाया था,उसे ही हड़ताल से पहले हड़ताल तोड़ने की जिम्मेदारी निभाना पड़ गया। दोनो संघ लिखित आश्वासन के बिना हड़ताल वापस नहीं लेना चाहते थे। मांगे पूरी नहीं हुई।होती भी कैसे,अधिकारहीन अधिकारी के पास अधिकार ही नहीं थे।
वार्ता विफल रही और समाचार पत्रों में फोटो छपवाने के बाद भी अधिकारी/राशन दुकान दार हड़ताल पर चले गए। राशन दुकानदार तीन खेमे में बंटे हुए है।एक खेमा पांच दिन बाद मंत्री,सचिव, संचालक से वार्ता किए बगैर उप संचालक के आश्वासन पर हड़ताल खत्म कर दिया। मांगे पूरी किए जाने के विचार पर हड़ताल खत्म करना था तो ये आश्वासन तो पहले भी बैठक में मिला था। राशन दुकानदारों के प्रतिनिधियों का कहना है कि हड़ताल पर जाने के लिए उकसाने का काम संचालनालय के एक अधिकारी ने अपनी खराब होती स्थिति को सुधारने के लिए किया था। ये बात खाद्य मंत्री और सचिव के संज्ञान में आ चुकी है।
ऐसी स्थिति में हड़ताल खत्म कराने के लिए राजधानी के संघ के अध्यक्ष को बुलाकर बिना किसी लिखित आश्वासन के हड़ताल खत्म करने के लिए कहा गया। इस अध्यक्ष का लाखो का राशन घोटाले के प्रकरण में अपर संचालक की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हड़ताल बिना किसी जिम्मेदार मंत्री,सचिव,संचालक के लिखित आश्वासन के खत्म होने पर प्रदेश के राशन दुकान दार खुद को ठगा महसूस कर रहे है।सबसे बड़ी कठनाई वर्तमान महीने का राशन कोटा है जिसमे पुराने बचत को काट दिया गया है। राशन दुकानदार अगले महीने के लिए दिए गए कोटा को इस माह बेच रहे है।इस बारे में केंद्र सरकार को शिकायत हो चुकी है।शीघ्र ही बड़े पैमाने पर जांच होने वाली है। देखना है कि जांच में कौन फंसेगा।