किसी सरकार के मुखिया की संविधान के प्रति शपथ तब तेल लेने चली जाती है जब वह निष्पक्ष होकर काम करने के बजाय अपने चंगू मंगू के कहने पर काम करने लग जाता है। दूसरा अपने ही विभाग के अधिकारी के प्रति षड्यंत्र करना केवल पाकिस्तानी मानसिकता के लोगो के लिए ही संभव है।
दोनो ही काम भूपेश बघेल की सरकार में जमकर हुए। पहले तो भाजपा सरकार के समय के नान घोटाले में संलिप्त अनिल टुटेजा को मुख्य मंत्री कार्यालय में रखा गया और एक अदनी से डिप्टी कलेक्टर सौम्या चौरसिया को सर्वेसर्वा बना दिया गया।फिर चुन चुन कर ऐसे अधिकारी को महत्वपूर्ण पद पर रखा गया जो स्वामिभक्ति का पाठ पढ़ कर आए थे।
भ्रष्ट्राचार में संलिप्त अधिकारियो की जांच के लिए हर राज्य में दो जांच एजेंसी होती है। एक होती है एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और दूसरी होती है आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग (EOW)। ताज्जुब की बात है कि पुरानी कांग्रेस शासनकाल में इन विभागों का जिम्मा एक ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को दिया गया जो अपने पूरे कार्यकाल में सिवाय भ्रष्ट्राचार के अलावा कोई काम नहीं किया। पांच साल में एक भी सरकारी अधिकारी रिश्वत लेते नही पकड़ाया। एक भी सरकारी कर्मचारी के यहां छापा नही पड़ा। ऐसा नहीं था कि ये दोनो विभाग कार्य नही कर रहे थे। हर दिन फेरहिस्त बनती थी और विभाग के दलाल अधिकारी फर्जी शिकायत बना कर संबंधित अधिकारी को बुलाकर हिसाब किताब किया करते थे।
भाजपा शासन में जी पी सिंह एक जिम्मेदार अधिकारी थे। उन पर अनिल टुटेजा और सौम्या चौरसिया ने दबाव बनाया कि पूर्व एसीबी और ईओडबल्यू के सबसे बड़े अधिकारी के विरुद्ध फर्जी केस बनाकर कार्यवाही करे। इसके अलावा जो काम जी पी सिंह के बाद आए अधिकारी ने मंडोली के लिए हां किया उसे जी पी सिंह ने नियम से बात करने की बात कही तो उनको पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में भेज दिया।
अनिल टुटेजा और सौम्या चौरसिया का दिल इससे नही भरा और एसीबी और ईओडबल्यू के सारे महकमे का एक ही टारगेट तय हो गया कि जी पी सिंह को किसी भी हालत में इतना डेमेज करना है कि जी पी सिंह समय से पहले ही मानसिक त्रासदी का शिकार हो कर खत्म हो जाए। व्हाट्स ऐप में चैट करके जनता को इडियट बताने वाले पुलिस अधिकारी ने जी पी सिंह के पड़ोसी और बैंक के एक अधिकारी को डरा धमकाकर सोना इंप्लांड कर दिया गया। सरकार के विरोध में काम करने के लिए राजद्रोह का आरोपी बना दिया गया।
बताया जाता है आरिफ शेख, आनंद छबड़ा, दीपांशु काबरा अजय यादव की एक टीम थी जो पूरे आपरेशन को अमल करवाने के लिए अभिषेक माहेश्वरी, अमृता सोरी, संजय देवसथले, सत्य व्रत तिवारी, सपन चौधरी, मोहसिन खान,अरविंद सिंह, अजितेश सिंह पंकज, श्लोक श्रीवास्तव की पूरी टीम ने अनिल टुटेजा और सौम्या चौरसिया के कहने पर जी पी सिंह के घर में विधान सभा चुनाव के नतीजों के आंकलन को सरकार विरोधी बता दिया। दिल्ली से गिरफ्तार कर ले आए। जेल में ठूंस दिया। बिना आरोप प्रमाणित हुए बर्खास्त कर दिया।
ऐसा तो फिल्मों में होता है लेकिन कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में एक से एक स्क्रिप्ट राइटर हो गए थे। सरकार के बदले की कार्यवाही को केट ने दूध का दूध पानी का पानी कर दिया है। चार सप्ताह में जी पी सिंह को पदस्थ करने का आदेश आ चुका है। सरकार भी बदल चुकी है इस कारण कही कोई कठनाई नही है लेकिन उस चंडाल चौकड़ी का क्या होगा जिसने गलत मामले में एक आई पी एस अफसर का करियर तबाह करने का षड्यंत्र किया है। भाजपा सरकार के मुख्य मंत्री विष्णु देव साय को चाहिए कि तत्काल सारे जिम्मेदार अधिकारियो को निलंबित कर विभागीय जांच करवाए और आपराधिक षड्यंत्र के लिए आपराधिक मामला दर्ज करवाए।