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जोगी और बघेल के 8 साल का कुशासन बनाम रमन के 15 साल का सुशासन

भारत के प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ का जन्म हुआ था।अपने जन्म के बाद छत्तीसगढ़ ने दो मुख्य मंत्रियों का कुशासन और एक मुख्यमंत्री के सुशासन का कार्यकाल देखा है। पहले तीन साल अजीत जोगी फिर15साल डा रमन सिंह और पिछले 5 साल में भूपेश बघेल का कार्यकाल छत्तीसगढ़ की जनता ने देखा। दो राष्ट्रीय दल के तीन मुख्यमंत्री के रूप में डा रमन सिंह (भाजपा) और अजीत जोगी और भूपेश बघेल कांग्रेस पार्टी के मुख्य मंत्री बने।

संयोग ये रहा कि कांग्रेस के दोनो मुख्य मंत्री का कार्यकाल कहे या क्रिया कलाप कुछ बातो को छोड़ कर एक समान ही रहा। दोनो ही मुख्यमंत्री स्वभाव से निरंकुश रहे।आलाकमान दोनो के सामने बेबस रहा। दोनो ही राज्य में धर्मांतरण को पनाह देने वाले रहे। दोनो के कार्यकाल में एक सम्प्रदाय के उपनाम का विशेष परिवार जबरदस्त सहयोगी रहा। दोनो के कार्यकाल में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई। दोनो ने ही प्रदेश में भय का वातावरण बनाया और नृशंस हत्या के लिए राज्य में नाराजगी फैली। दोनो की हार हुई तो विधायको की संख्या पूर्ववत हो गई जहां से शुरू हुए थे। दोनो अपने इकलौते कार्यकाल के बाद जनता द्वारा नकार दिए गए। ये भी संयोग रहा कि दोनो के अधिकांश मंत्री चुनाव हारे। दोनो ही राज्य की राशन व्यवस्था में सेंध लगाकर अकूत रुपया बटोरे। इस काम में भी धमतरी के एक राइस मिलर की भूमिका दोनो मुख्यमंत्री के कार्यकाल में एक सम्प्रदाय के उपनाम के समान ही कामन रहा।

राज्य निर्माण के बाद अजीत जोगी पैराशूट मुख्य मंत्री के रूप में अवतरित हुए थे। महज तीन साल में अजीत जोगी ने प्रदेश में ऐसा वातावरण निर्मित किया कि प्रदेश में आतंक का राज चरम पर पहुंच गया। सरे आम हत्या,लूट डकैती के माहौल में हुआ ये कि कांग्रेस तीन साल सत्ता में रह पाती। अगले 15 साल तक छत्तीसगढ़ की शांति प्रिय जनता ने कांग्रेस की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखा। अजीत जोगी की कार्यप्रणाली कांग्रेस में जीतने या हारने के बाद नहीं बदली।वे कांग्रेस के लिए भस्मासुर बन चुके थे। कांग्रेस की अंतर्कलह का बवंडर इतना बढ़ा कि आलाकमान को अंततः अजीत जोगी को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा।

2003से2018की अवधि के 15साल के कार्यकाल को भूल जाइए। 2018के चुनाव में अजीत जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने वाले भूपेश बघेल 65सीट जीत कर मुख्य मंत्री बने तो उनके भीतर अजीत जोगी की कार्यप्रणाली अपना घर बना चुकी थी। तानाशाही का गर्भ धारण कर भूपेश बघेल कुर्सी पर बैठे तो ये गुमान था कि केवल उनकी इकलौती मेहनत ने पार्टी को बहुमत दिलाया है। भूपेश बघेल ने खुद को पार्टी से बड़े बनाने के लिए छतीसगढ़ी अस्मिता को बढ़ाने के लिए गांव के किसानों को आर्थिक प्रलोभन के रूप में ढाई हजार रूपये क्विंटल में धान खरीदी का जाल बुना, तुर्रा ये भी था कि ये योजना टी एस बाबा की थी। इसके अलावा नरवा, घुरूवा,गरुवा बाड़ी योजना भी गांव के लोगो को रिझाने के लिए बनी।

छत्तीसगढ़िया प्रथा, परंपरा को भी अपग्रेड किया । राम गमन पथ, तुलसी वन का पासा भी फेका। इतना कर भूपेश बघेल ये मान बैठे कि वे अगले साढ़े साल के मुख्यमंत्री तो बन ही गए है (इसमें ढाई साल टी एस बाबा से छीने गए शामिल है)। नियत अच्छी रहे तो सब कुछ ठीक होता है लेकिन नियत पहले दिन से ही खराब थी। 15साल के वनवास की भरपाई के लिए इतनी जल्दी थी कि कि ऐसा लगने लगा था मानो सब कुछ तुरत फुरत हासिल हो जाए।मन में एक विचार जन्म ले चुका था कि जेब गरम हो तो कुछ भी पकाया जा सकता है। इस काम के लिए कुछ सत्ता लोलुप आईएएस और आईपीएस अधिकारियों सहित एक राज्य सेवा की अधिकारी के अलावा एक संप्रदाय विशेष के सरनेम शुदा लोग भी मिल गए जिन्हें अजीत जोगी को निपटाने का ठेका मिला हुआ था।सत्ता की सड़ांध में बदबूदार लोगो को बदबू ही अच्छी लगती है । महासमुंद से इसकी भी खेप जुड़ गई।

बेईमानी की पाठशाला खोलने के लिए कोरोना काल स्वर्णिम वर्ष साबित हुआ। आम जनता के घर में बंद होने के चलते सारा खेल मुख्यमंत्री के कार्यालय से चलने लगा। पहला लक्ष्य टी एस बाबा थे संयोग से स्वास्थ्य मंत्री भी थे। एक तीर से दो शिकार का खेल समानंतर दौड़ा।स्वास्थ्य विभाग में बेईमानी पसरने लगी और स्वास्थ्य मंत्री को सिकुड़ाने का सफल प्रयास रंग लाने लगा। हालात ये खड़े कर दिए गए थे कि टी एस बाबा को उनकी ही पार्टी के साथी विधायक खुले आम बुरा भला कहने लगे। नाराज बाबा ने कई बार कोप धारण किया लेकिन कांग्रेस के मध्य प्रदेश, राजस्थान,पंजाब के बगावत का असर ये था की बाबा केवल दिल्ली के चक्कर काटते रह गए। ढाई ढाई साल के फार्मूले में बाबा को दिल्ली ने ठग लिया। साढ़े चार साल बाद उप मुख्यमंत्री बने तो मन में असंतोष था लेकिन लिचिर पिचर स्वभाव के बाबा ठुल्लू ही पकड़े।

कोरोंना काल में शराब बटवाने की योजना बेईमानी को बढ़ाने का पहला चरण था। जिंदगी सामान्य हुई तो मंडली को हर खेत हरा दिखने लगा।।क्या शराब,क्या कोयला,क्या खनिज, क्या जल ,क्या रेत क्या डीएमएफ फंड सभी टारगेटेड हो गए।
सारे विभाग के मंत्रियों को सिर्फ ट्रांसफर के बदले में पैसे लेने का अधिकार दे विधायको को वरिष्ठता के हिसाब से आर्थिक मदद की जिम्मेदारी महासमुंद को दे दी गई। मंत्रियों के मातहत कुछ उच्च अधिकारी केवल और केवल धन संचय के एजेंट बनकर सिवाय करेंसी ट्रांसफर के जरिए बन गए थे।

बेईमानी का भूत सर चढ़ कर बोलने लगा तो केंद्रीय एजेंसी का आगमन हुआ। कई घोटाले में मुख्यमंत्री के सचिवालय की अधिकारी सहित दो आईएएस, दो बीएसएनएल के अधिकारी और महासमुंद के कर्ता धर्ता सहित एक उपनाम विशेष के साहेबजादे साल भर से जेल में है। इतने से भी जी नहीं भरा तो महादेव सट्टेबाजी का खेल शुरू हो गया।इस मामले में भी एक बार फिर मुख्य मंत्री का कार्यालय ही घेरे में आया। सारे मामलों को राजनैतिक रंग देने की भरपूर कोशिश हुई। गरीबों की खाद्यान्न योजना में भी चांवल के लेने से देने तक घोटाला ही घोटाला हुआ। जिसके चलते प्रधान मंत्री को सभा में बोलना पड़ा कि चांवल वाले बाबा के राज्य में चांवल चोर लोग बढ़ गये है।

राज्य में एक वर्ग विशेष को पनपाने के अलावा धर्मांतरण का मुद्दा भी दबे पांव पैर पसारने का काम भी चल रहा था। रोहिंग्या मुसलमानो के विस्थापन का भी शोर बढ़ा
2018का जनादेश ने बता दिया कि कांग्रेस के 2000से 2003के कार्यकाल का भीभत्सतम रूप 2018 से2023का कार्यकाल था जिसमे राज्य की कानून व्यवस्था चौपट हो चुकी थी। कुछ आईएएस और आईपीएस अधिकारी सहित प्रतिनियुक्ति और संविदा पाने के कुछ अधिकारी खुद को परोस चुके थे। राज्य में पहली बार हुआ कि एक पुलिस अधिकारी को जनसंपर्क और परिवहन विभाग का जिम्मा सिर्फ इसलिए दिया गया ताकि वसूली और धमकाने का काम एक साथ हो। लोक सेवा आयोग चपरासी के पद के लिए परीक्षा कम लिया। छः लाख की कहानी आम हो गई। पिछले पीएससी में हद पार हो गई।भूपेश बघेल भूल गए थे कि जनादेश किस बात के लिए मिला है। उन्होंने एक सुर में सारे विधायको को महीना बांध कर भेट मुलाकात कर ये तय कर लिया कि वे ही अकेले तारणहार है। विधायको के लिए ये प्रयोग बुरा साबित हुआ और नब्बे फीसदी विधायक चुनाव हार गए।

भाजपा के पास विपक्ष के नाम पर गिने चुने चेहरे थे। कांग्रेस के पूरे 65 विधायको में टारगेट में सिर्फ भूतपूर्व मुख्य मंत्री डा रमन सिंह के अलावा कोई नहीं था। पूरे 5साल में डा रमन सिंह पर व्यक्तिगत और उनके परिवार के प्रति थोथी बयानबाजी, आदलती आरोप के दौर चलता रहा। कांग्रेस के दो कौड़ी के नेता भी भाजपा को नहीं बल्कि डा रमन सिंह को ही बदनाम करने में सारी शक्ति झोंक दी। ये सब डा रमन सिंह के कद को बौना करने की साजिश थी।

2003 में अजीत जोगी के खिलाफ डा रमन सिंह ने बड़े संयम के साथ जनादेश का परिणाम लाकर साबित किया था कि वे फर्श से अर्श पर पार्टी को पहुंचाने की ताकत रखते है। उनका 2003, 2008 और 2013 का कार्यकाल अमन और शांति का था। उनके चलते सार्वजनिक वितरण प्रणाली जनाधार का कारण बनी। प्रदेश का हर गरीब व्यक्ति के घर में चूल्हा जला और हमेशा के लिए भूख से निजात भी मिली। आज भी वे चाउर वाले बाबा कहलाते है। एक बार फिर जनादेश आतंक,कुशासन और घोटाले के खिलाफ 2003 के बाद आया है। 2000 और 2018 के दो कार्यकाल में प्रदेश ने अजीत जोगी और भूपेश बघेल के कार्यप्रणाली में यही पाया कि भूपेश बघेल, अजीत जोगी के बाप साबित हुए.

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