राजनीति के गलियारे में अनेक व्यक्ति ऐसे है जिन्हें असली नाम के बजाय उनके चालू नाम से जाना जाता है। हर पार्टी में अनेक ऐसे नाम है जिन्हें रिश्तेदारी में उपयोग किया जाता है।कांग्रेस में अनेक व्यक्ति ऐसे है जिन्हें बाबा, कका,भैया,भाभी, दीदी, बुआ के रिश्ते से संबोधित किया जाता है। छत्तीसगढ़ में दो ही राजनैतिक दल है जिन्हें सत्ता मिली है और भविष्य में भी एक दल के खराब प्रदर्शन के चलते दूसरे दल को सत्ता देना जनता की मजबूरी है। पिछली बार कांग्रेस थी अब भाजपा है।अगली बार उम्मीद कांग्रेस की दिख रही है।कारण भी है मुख्यमंत्री कार्यालय में रवि रूपी सूर्यकांत के चलते नांव डूबते दिख रही है।
खैर, अभी तो समय है। राजनीति में पांच साल भले ही पर्याप्त होता है लेकिन सत्ता में बैठे लोग और आने के लिए मेहनत करने वालो के लिए कम ही होती है। विपक्ष में बैठे लोग मन में मलाई खाते है।पक्ष में बैठे लोग वास्तविक रूप से मलाई खाते है। वर्तमान सरकार में मलाई खाने वालो के साथ दिक्कत कांग्रेस सरकार के समान ही है। मुंह में लगी मलाई दिख रही है। करेंसी टावर में मलाई इकट्ठी हो रही है। शहंशाह फिल्म में एक डायलॉग था सीरिश्ते में हम तुम्हारे बाप होते है।” रिश्ते में सबसे बड़ा रिश्ता “बाबा” का होता है। मराठी मानुष पिता को बाबा कहते है। कांग्रेस में एक बाबा है जिन्हें सारा सरगुजा बाबा साहब कहता है।
बाबा भैया कहने की हिम्मत किसी में नहीं है।कारण भी है बाबा साहब के बाबा सॉरी पिता जी प्रशासनिक सेवा से थे मां राजनीति में थी।राज परिवार से है सो अलग। विरासत में राजनीति मिली और सत्ता भी। मुख्यमंत्री बनते ढाई साल के लिए लेकिन ये पर्दे के पीछे की बात है।आगे तो यही है कि कांग्रेस के राज परिवार वालों ने जो कहा वो होने नहीं दिया।आखिरी साल में कृते या उपकृते “उप” मुख्यमंत्री बना जरूर दिए गए। उप मुख्यमंत्री ऐसा गैर संवैधानिक पद है जिसका संविधान में कोई उल्लेख “नहीं” है। केवल रेवड़ी बांटने और शक्ति संतुलन का पद है।
बहुत दिनों बाद बाबा साहब ने चुप्पी तोड़ी। इस बार उन्होंने बताया है कि वे भी अन्य लोगों के समान मुख्यमंत्री बनना चाहते है। चाहने और बनने में बड़ा अंतर होता है। उतना ही जितना बाबा साहब और भूपेश बघेल में है। ये अंतर आगे भी रहेगा क्योंकि इस बात को मानने में किसी को गुरेज नहीं है कि जैसे अजीत जोगी ने गांधी परिवार में अपनी पैठ बना कर रखी थी उससे ज्यादा भूपेश बघेल की पैठ है। सत्ता में कांग्रेस के आने का मतलब ही भूपेश बघेल का पुनः मुख्यमंत्री बनना ही है। कांग्रेस में भविष्य की सत्ता को सम्हालने के चरण दास महंत, दीपक बेंज दावेदार है लेकिन कांग्रेस में गांधी परिवार ही तय करेगा इससे कांग्रेस और दीगर दलों में कोई मतभेद नहीं है। बाबा साहब को गांधी परिवार ने अवसर नहीं दिया इसमें भी उनको कोई इंकार नहीं होगा।
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