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भ्रष्ट्राचार पर सांय सांय

देश और राज्य में सरकारें भी है,जन प्रतिनिधि भी है और सरकारी अधिकारी-कर्मचारी भी है। सरकारें ईमानदार है? ये बात कोई भी मानने के लिए तैयार नहीं है। जन प्रतिनिधि ईमानदार है? लोग हंस देते है। सरकारी अधिकारी कर्मचारी ईमानदार है? कोई स्वीकार ही नहीं करता है। इसका मतलब सीधा-सीधा ये है कि व्यवस्था ही बेईमान है, भ्रष्ट है। क्या ये मान लिया जाए कि भ्रष्ट्राचार ही शिष्टाचार है? इस पर जिस किसी से भी पूछो चाहे वह सरकार में हो, जन प्रतिनिधि हो या सरकारी अधिकारी या कर्मचारी हो साफ मुकर जाते है।

जबकि आम धारणा है कि भ्रष्ट्राचार की नदी में सभी डुबकी लगाते रहे है और आगे भी लगाते रहेंगे। बेइमानो की दुनियां में ईमानदार को डरपोक, भीरू, कायर माना जाता है। ज्यादातर सरकार के नुमाइंदे जिन्हे प्रधान और मुख्यमंत्री के साथ केंद्र और राज्य मे मंत्री के रूप में जाना जाता है उनके ईमानदार होने पर सबसे ज्यादा शक किया जाता है। इन पदों में आने के साथ ही पता नही कौन सा अलादीन का चिराग हाथ लगता है कि महज पांच साल में रहन सहन देख कर ही अंदाजा हो जाता है कि कमीशनखोरी का धंधा फल फूल चुका है।

खुद तो खुद रिश्तेदार, संगी साथी भी आश्चर्यजनक तरीके से अमीर हो जाते है। लोग चाहते हैं कि उनका स्टेट्स औरों के मुकाबले अच्छा हो, कमाई काली हो या सफेद सभी को यह पसंद होता है। लोगों का मानना है कि आज के समय में जिसके पास पैसा है उसके पास ही पॉवर है। वैसे दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां पर कोई भी सेक्ठर इससे अछूता नहीं रहा। व्यापारी भी सरकार की शह पर अपने गलत काम को भी सही बता कर जनता से लूट कर अपनी कमाई बढ़ा लेता है। आम लोगों को टैक्स के चंगुल में फंसा कर बड़े उद्याेगपति जीएसटी और आयकर चोरी कर काली कमाई को सफेद करता है। सीए इसका एक अच्छा माध्यम है। आज की राजनीति मेें पूरा सिस्टम झूठ पर टीका है।

नेता से लेकर अफसर अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण लोगों को धोखा देकर अपनी साख बढ़ा तो लेता है, पर उसकी असलियत क्या है। देखने में यह छोटी बात है, लेकिन उन सभी के पीछे नौकरशाह और नेताओं का अहम ही काम करता है। खटाखट खटाखट के लालच में लोगों ने कांग्रेस का कई जगह पर जीताया पर उसमें खुद ही फंस गए। यह भी एक तरह से भ्रष्टाचार का ही रूप है। छत्तीसगढ़ में अफसर जो अभी जेल में है उन्होंने करोड़ों का वारा न्यारा किया। वह भी मौका मिला तो मारों चौका की तर्ज पर काली कमाई का नतीजा है। अब यह उम्मीद करना मुश्किल हो गया है कि आने वाली सरकारों में कोई इमानदारी को ढोल बजाएगा। सिस्टम ही चढ़ावा मांगता है तो चढाने वाला चढ़ावा नहीं ले यह हो ही नहीं सकता।

चाणक्य नीति के अनुसार पापकर्म द्वारा या किसी को कष्ट और क्लेश पहुंचाकर कमाया पैसा अभीशापित होकर मनुष्य का नाश कर देता है। इस धन के प्रभाव से सज्जन पुरुष भी पाप की और बढ़ने लगते हैं। इसलिए ऐसे पैसाें से बचना चाहिए, वरना जल्दी ही कुल सहित उस इंसान का नाश हो जाता है। कलयुग में इसकी कल्पना करना ना के बराबर है। अत: भ्रष्टाचार सांय सांय चलता ही रहेगा। जब तक उनका नाश नहीं हो जाता।

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