कका, बड़े नए अंदाज में नजर आ रहे है। कोतवाल बन गए है पत्रकारों के लिए। एक ही दिन में पुलिस विभाग के एस पी और टी आई को चेतावनी दे डाली। पहली चेतावनी तो पुलिस वाले गुंडे के लिए थी, दूसरी चेतावनी बस्तर के एक टी आई के द्वारा पत्रकारों को झूठे मामले में फंसाने के लिए थी। अच्छा है वक्त बदलता है तो व्यक्ति को भी बदलना चाहिए खासकर रंगत उड़ी हुई हो तो। कका बड़े सीधे आदमी है,जलेबी की तरह, चौरंगी लाल दो मुखिया जैसा चरित्र भी इनके सामने नहीं टिकता है।गिरगिट, इनको देख कर छिप जाते है।सियार, रंग के बाल्टी में गिर कर रंगने से इंकार कर देता है। सियासत का रंग देखना है तो छत्तीसगढ़ के कका का रंग देखना जरूरी है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता परोसा गया था तब उम्मीद थी कि बेहतर प्रशासन देखने को मिलेगा। सत्ता का मद ऐसा चढ़ा कि पूरे राज्य में आतंकवाद और भ्रष्टाचार सर चढ़कर बोलने लगा। फिल्मों में जिस प्रकार गैंग देखे जाते है उससे ज्यादा छत्तीसगढ़ में दिखने लगा। दो दो कलमकार के सलाहकार के होने के बावजूद कांग्रेस के शासनकाल में अघोषित सेंसरशिप लगा हुआ था। पुलिस वाले आईपीएस गुंडे पत्रकारों को सरकार के काले कारनामे को दबाने के लिए भाड़े के कांग्रेसी शिकायकर्ता ले रखे थे। जितना सच को दबाने के लिए कांग्रेस के शासनकाल में जनसंपर्क, राजधानी और थाने में बैठे आईपीएस अधिकारियो ने निर्लज्जता से कोशिश की, उनका अंजाम देख लीजिए। सब ईडी, आईटी, और एसीबी,सीबीआई में दर्ज एफआईआर में आरोपी है।
मै सबसे बड़ा उदाहरण हूं।मेरे लेख में जिन जिन लोगों की सच्चाई सामने लाई गई आज उनमें से नब्बे फीसदी जेल में दो साल से पनियल सब्जी- दाल, मोटा चांवल, कच्ची रोटी और चाशनी चाय पी रहे है। सबेरे मुंह अंधेरे में भारतीय पद्धति के खुड्डी में बैठ रहे है।पेट और पैर में दर्द हो रहा है। पत्रकार का काम सच लिखना है लेकिन कोरोना काल के बाद जिन महानुभावों का नाम फोटो आज समाचार पत्रों में मय बड़े बड़े फोटो के साथ छप रहा है, वो क्यों नहीं छपता था, इस पर कका मुंह खोलेंगे?
सत्ता चली गई तो खैरख्वाह बन रहे हैं। आपको छत्तीसगढ़ की जनता पहचान चुकी है।घड़ियाली आंसू रोने से काम नहीं बनने वाला।अभी तो पिछले प्रशासन के गुंडों का जेल जाना बाकी है। सहानुभूति है तो सौम्या चौरसिया, रानू साहू, समीर विश्नोई, अनिल टुटेजा, अमरपाति त्रिपाठी, सूर्यकांत तिवारी, अनवर ढेबर के लिए मुंह खोलिए जो आपके चलते जेल में बैठे है। पत्रकार जुल्म पहले सह चुके है अब आपकी बातों में वजन नहीं है