नई दिल्ली। देश में भले ही नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घट रही हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में प्रभावित जिलों की संख्या कम होने की बजाए बढ़ रही है. प्रदेश के एक-दो नहीं बल्कि 15 जिले नक्सल प्रभावित हैं. लोकसभा में अनिल यशवंत देसाई के देश में नक्सलियों की सक्रियता को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि देश बीते कई दशकों से वामपंथी उग्रवाद का सामना कर रहा है. इस समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना’ को अनुमोदित किया था.
नीति में एक बहुआयामी कार्यनीति की परिकल्पना की गई है, जिसमें सुरक्षा संबंधी उपाय, विकासपरक पहलें, स्थानीय समुदायों के अधिकारों एवं हकदारियों को सुनिश्चित करना आदि शामिल हैं. गृह राज्यमंत्री ने बताया कि वामपंथ उग्रवाद (नक्सली) वर्ष 2013 में 10 राज्यों में 126 जिलों से घटकर वर्ष 2024 में 9 राज्यों में केवल 38 जिलों तक रह गए हैं. इनमें आंध्र प्रदेश का एक, छत्तीसगढ़ के 15, झारखण्ड, केरल दो, मध्य प्रदेश के तीन, महाराष्ट्र के दो, ओडिशा के सात, तेलंगाना के दो और पश्चिम बंगाल का एक जिला शामिल है. छत्तीसगढ़ के प्रभावित जिलों में बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमंद, नारायणपुर, राजनांदगांव, मोहल्ला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, खैरागढ़- छुईखदान-गंडई, सुकमा, कबीरधाम, मुंगेली शामिल हैं.
नित्यानंद राय ने बताया कि वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2023 में नक्सली घटनाओं में 73% की कमी आई है. इसी अवधि के दौरान नक्सली हिंसा से होने वाली मौतों (सिविलियन सुरक्षा बल) में भी 86% की कमी आई है. वहीं वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या वर्ष 2010 में 465 पुलिस स्टेशनों से घटकर वर्ष 2023 में 171 पुलिस स्टेशनों तक रह गई है. वर्ष 2024 (जून तक) में 89 पुलिस स्टेशनों द्वारा वामपंथी उग्रवाद संबंधी हिंसा की सूचना दी गई है.
गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने इसके साथ बताया कि वामपंथी उग्रवाद संबंधी हिंसा में पिछले पांच वर्षों (01 जनवरी 2019 से 15 जुलाई 2024 तक) के दौरान 647 वामपंथी उग्रवादी कैडरों को मार गिराया गया, वहीं 207 सुरक्षा बल कार्मिकों ने शहादत प्राप्त की.