छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनने के बाद सरगुजा संभाग से हर मंत्री के यहां एक ओएसडी की नियुक्ति की गई है। ये सारे ओएसडी खोज-खोज कर निकाले गए हैं। इनमें से कुछ राज्य प्रशासनिक सेवा, कुछ विभागीय मंत्री के विभाग से ढूंढ का निकाले गए हैं। इन पर कई बड़ आरोप भी पहले ही लगे हुए हैं। इन हिस्ट्री शिटरों को यहां बिठाकर उनसे लेनदेन का काम लिया जा रहा है। आपको बता दें कि इनमें से कुछ पहले भी पुराने सरकार में काम कर चुके हैं। उनकी क्षमता देखकर उन्हें रखा गया है। केदार कश्यप, रामविचार नेताम, दयालदास बघेल, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े, राजेश अग्रवाल सहित कुछ अन्य मंत्री के यहां यही हाल है।
आखिर सरगुजा संभाग से ओएसडी बिठाने के पीछे के कारणों की तहकीकात की तो पता चला कि वे सभी संगठन और सत्ता के नजदिकियों के कारण लाए गए है। उनका उद्देश्य कमा कर देना है। मंत्री भी उन पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं। सता मिलने के साथ ही रेत से तेल निकालने वाले इन ओएसडी का पॉवर देखते ही बनता है। सीधे शब्दों में कहे तो खाओ और खाने दो की तर्ज पर पूरा काम चल रहा है।

खाओ-खिलाओ,
खाद्य विभाग में हर सरकार में बड़े-बड़े कारनामे होते रहे हैं। अत: उसी फील्ड से जुड़े लोगों को मंत्री के यहां ओएसडी बनाकर खेल किया जाता है। यहां पर एक ऐसे अफसर को चुना गया जो पहले ही फर्जी तरीके से नौकरी में आया। उस पर आरोप तो है, ऐसे में मंत्री दयालदास के रहमोकरम में रहकर पूरी सेवा में लगा है। पूरा लेनदेन संतोष अग्रवाल के जिम्मे हैं। वह पहले भी पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के यहां सेवा दे चुका है। यानि उसके अनुभव का पूरा लाभ दयालदास भी ले रहे हैं।
कागज के नोट भी पचाने की क्षमता
यहां बता दे कि नान का टर्न ओव्हर प्रति वर्ष 3000 करोड़ का है। यहां पर चावल की मिलिंग के जरिए करोड़ों का खेल मिलरों से मिलकर हर साल होता है। अफसरों की ऐसी नस्लें भी पाई जाती हैं जो ईंट, सीमेंट, बालू यहां तक कि कागज के नोट भी पचाने की क्षमता रखती हैं। प्रदेश खाने वाले भी होते हैं। कही पांच रुपये में थाली तो कही एक रुपये किलो खाद्यान्न की योजनाये सरकारे चलाती दिखती है। नेता जी की जेबें भर जाती हैं पर जनता का पेट नही भर पाता।
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