झूम बराबर झूम, दारू का नया सींबाल बना यह ब्रांड

पिछली सरकार में शराबबंदी का वादा पूरा नहीं किया जा सका। भाजपा सरकार कांग्रेस को इसके लिए कोसती रही, लेकिन अपनी सरकार में लोकल फर वोकल की तर्ज पर शराब के पुराने कारोबारी का ब्रांड बजार में तेजी से बिकवाने में मदद कर रहे हैं। सिम्बा बियर राज्य के हर छोटे मोटे शराब दुकानों में मिल जाएगा। बड़े ब्रांड किंगफिशर, कार्ल्सबर्ग, बडवाइज़र मैग्नम, हेइनकेन,. टुबोर्ग, बीरा पूरे बाजार से गायब है। आखिर सींबा इतना असरदार कैसे हो गया। इसकी कहानी भी दिलचस्प हैं। विभाग का प्रभार नए मंत्री के पास आते ही संगठन के हिसाब किताब में डिमांड बढ़ गई। नया मुर्गा खोजते पुराने शराब ठेकेदार पर नजर गई।

उन्होंने पूरा मामला मैनेज करते हुए शराब दुकान में एक पेटी बेचने के एवज में बड़ा चारा डाल दिया। अब क्या था, पूरा छत्तीसगढ़ सींबा में ही झूमने लगा। एक समय था, जब यह कहा जाता था कि इसको पीने के बाद नशा ही नहीं होता यह आरोप लगता था। अब यह उल्टा हो गया है, नशा केवल पैसे की उगाही की हो रही है। पूर्व में शराब के प्रबंधन में सरकार आते ही बड़े ब्रांड का सप्लाई निजी लोग सिंडिकेट बनाकर कर रहे थे।

एपएल 10 के लायसेंस को खत्म किए जाने के बाद कई लोग रोड पर आ गए। ऐसे में पहले संगठन के खजांची थे। उन्हें ही गदी से उतार कर सरगुजा संभाग से नए खजांची को लाया गया। उन्होंने सुरसा की तरह मुंह खोला और असरदार ने दाना चुगाना शुरू किया। अब लखन और बलदाउ मिलकर पूरे सिस्टम को मालामाल कर रहे हैं। देखा यह जा रहा है कि सूर मिलाए बिना ही बोतलों से संगीत की धून निकल रही हे। राजधानी और न्यायधानी दोनों जगहों पर इस कारोबार के बड़े उस्ताद बैठे हैं।

बाबा जी कहिन
राजनीति के गलियारे में अनेक व्यक्ति ऐसे है जिन्हें असली नाम के बजाय उनके चालू नाम से जाना जाता है। हर पार्टी में अनेक ऐसे नाम है जिन्हें रिश्तेदारी में उपयोग किया जाता है।कांग्रेस में अनेक व्यक्ति ऐसे है जिन्हें बाबा, कका,भैया,भाभी, दीदी, बुआ के रिश्ते से संबोधित किया जाता है। छत्तीसगढ़ में दो ही राजनैतिक दल है जिन्हें सत्ता मिली है और भविष्य में भी एक दल के खराब प्रदर्शन के चलते दूसरे दल को सत्ता देना जनता की मजबूरी है। पिछली बार कांग्रेस थी अब भाजपा है।अगली बार उम्मीद कांग्रेस की दिख रही है।कारण भी है नौकरशाहों और मुख्यमंत्री कार्यालय में रवि रूपी सूर्यकांत के चलते नांव डूबते दिख रही है।

खैर, अभी तो समय है। राजनीति में पांच साल भले ही पर्याप्त होता है लेकिन सत्ता में बैठे लोग और आने के लिए मेहनत करने वालो के लिए कम ही होती है। विपक्ष में बैठे लोग मन में मलाई खाते है।पक्ष में बैठे लोग वास्तविक रूप से मलाई खाते है। वर्तमान सरकार में मलाई खाने वालो के साथ दिक्कत कांग्रेस सरकार के समान ही है। मुंह में लगी मलाई दिख रही है। करेंसी टावर में मलाई इकट्ठी हो रही है। शहंशाह फिल्म में एक डायलॉग था सीरिश्ते में हम तुम्हारे बाप होते है।” रिश्ते में सबसे बड़ा रिश्ता “बाबा” का होता है। मराठी मानुष पिता को बाबा कहते है। कांग्रेस में एक बाबा है जिन्हें सारा सरगुजा बाबा साहब कहता है। बाबा भैया कहने की हिम्मत किसी में नहीं है।कारण भी है बाबा साहब के बाबा सॉरी पिता जी प्रशासनिक सेवा से थे मां राजनीति में थी।

राज परिवार से है सो अलग। विरासत में राजनीति मिली और सत्ता भी। मुख्यमंत्री बनते ढाई साल के लिए लेकिन ये पर्दे के पीछे की बात है।आगे तो यही है कि कांग्रेस के राज परिवार वालों ने जो कहा वो होने नहीं दिया।आखिरी साल में कृते या उपकृते “उप” मुख्यमंत्री बना जरूर दिए गए। उप मुख्यमंत्री ऐसा गैर संवैधानिक पद है जिसका संविधान में कोई उल्लेख “नहीं” है। केवल रेवड़ी बांटने और शक्ति संतुलन का पद है। बहुत दिनों बाद बाबा साहब ने चुप्पी तोड़ी। इस बार उन्होंने बताया है कि वे भी अन्य लोगों के समान मुख्यमंत्री बनना चाहते है। चाहने और बनने में बड़ा अंतर होता है।

उतना ही जितना बाबा साहब और भूपेश बघेल में है। ये अंतर आगे भी रहेगा क्योंकि इस बात को मानने में किसी को गुरेज नहीं है कि जैसे अजीत जोगी ने गांधी परिवार में अपनी पैठ बना कर रखी थी उससे ज्यादा भूपेश बघेल की पैठ है। सत्ता में कांग्रेस के आने का मतलब ही भूपेश बघेल का पुनः मुख्यमंत्री बनना ही है। कांग्रेस में भविष्य की सत्ता को सम्हालने के चरण दास महंत, दीपक बेंज दावेदार है लेकिन कांग्रेस में गांधी परिवार ही तय करेगा इससे कांग्रेस और दीगर दलों में कोई मतभेद नहीं है। बाबा साहब को गांधी परिवार ने अवसर नहीं दिया इसमें भी उनको कोई इंकार नहीं होगा।

पंडित जी का नहीं हुआ बोहनी-बट्टा
सरकारी मुलाजिम का बड़ा दायित्व यह होता है कि जहां भी बैठे वहां के कामों को सही ढंग से करें। अब तक वे ऐसे जगहों पर काम कर चुके हैं, जहां गरीबों का राशन दिलवाने लूटेरों से लड़ते रहे। राशन व्यवस्था और वहां पर चल रही बड़ी जांच को अधूरा छोड़ अब वे पानी पिलाने आ गए हैं। अब उनका पाला आकर निठल्ले ठेकेदारों से पड़ गया है, जो काम कर मेहनताना के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकाे राहत दिलाने के बजाय मीठा बोलकर वे आश्वासन का खेला कर रहे हैं। वैसे वे कमंडल को साथ लेकर चलत रहे है, उनके गुण उनमें भी है। अपने काम की तारीफ के अलावा कई तरह के जादू जानते हैं।

पंडित जी का बोहनी बट़्टा नहीं हुआ है, लेकिन उन्हें लगता है कि त्यौहार के पहले कुछ बड़ा हो सकता है। वे पहले रायपुर में कई विभागों में काम कर चुके हैं। आबकारी से लेकर पंचायत और खाद्य में अपने कारनामे दिखा चुके हैं। जिले में भी वे अपने काम के अंदाज के आधार पर सुर्खियों में रहे। अंतिम समय में डीएमएफ की राशि स्वीकृत कर बुरा फंसे थे। उनके बाद आने वाले अधिकारी ने तो मीडिया के माध्यम से सुर्खियां बठोरी पर पंडित वहां से पाक साफ निकले।

विभाग के मंत्री से संबंधों में आधार पर वे अब जल और जीवन के बीच लोगों को पानी पिलाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। यहां पर काले कबूतर वाले जादूगर पहले बहुत रहे। अब वे उन कामों का समझने के बाद ठेकेदारों पर ही चढ़ पड़े हैं। बड़े लोगों को भंुगतान कराकर चर्चा में आए पंडित को अब केंद्र के फंड का भरोसा है। मंत्री भी इन कामों में अब रूचि लेने के बजाय चुप्पी साधकर बैठ गए हैं। उन्हें मालूम है कि उनके कमंडल में गंगा जल से लेकर शिवनाथ का प्रवहा है।

परिवहन में कटर काट रहे चांदी, चारों तरफ बंट रही रेवड़ी
भोपाल में परिवहन विभाग का बाबू के पास अरबों की संपत्ति मिली यह खबर देखी और सुनी होगी। इतनी बड़ी रकम कम समय में उसके उगाही कर ली. छत्तीसगढ़ में ऐसा ही कारनामा कुछ लोग कर रहे हैं, लेकिन यहां यह अफसरों के मिली भगत से चल रहा है। परिवहन विभाग में छोटे से बड़ काम में दलालों का बोलबाला है। छत्तीसगढ़ परिवहन विभाग में दलालों द्वारा नियमों का उल्लंघन कर ड्राइविंग लाइसेंस बनाने, कमर्शियल वाहनों के फिटनेस के नाम पर तय शुल्क से अधिक वसूली करने, और बिना ट्रायल के लाइसेंस जारी करने जैसे फर्जीवाड़े सामने आए हैं। यहां तक नियमों की अवहेलना कर बस और ट्रक चालक कैसे बच निकलते हैं। यह भी खेल चल रहा है।

परिवहन विभाग में ऐसे दलालों को ‘कटर’ कहा जाता है। इसमें विभाग के कुछ पुराने और नए खिलाड़ी कटर के रूप में काम करते हैं। जिन वाहन मालिकों के पास 50 से अधिक गाडियां हैं उनकी गाडी महीनों बिना किसी परमिशन और वैध कागजात के सड़कों पर दौड़ती नजर आती है। कटर ऐसे प्रकरण में हर गाड़ी के नाम एक पर्ची काटते हैं। पर्ची थाने में दिखाने के बाद उसे छोड़ दिया जाता है। एक वाहन के पीछे महीने में 4 हजार से अधिक की वसूली होती है।

यहां पर आरटीओं के अफसर भी मिले हुए हैं। परिवहन विभाग के आला अफसर से लेकर कई नामचीन चेहरे हैं। जब तक यह विभाग सीएम साय के पास था, परिवहन को पूरा काम रवि देखते थे। कटर के रूप में वह परिवहन के अन्य कर्मियों के साथ मिलकर पूरी वसूली करते हैं। अब विभाग के मुखिया बदल गए हैं लेकिन दलाल वही है। अरबों का खेल परिवहन में महीने भर में होता है। कांग्रेस सरकार में जो लोग काम कर रहे थे वही लोग भाजपा के कार्यकाल में भी लगे हैं। नन्हे से लेकर बड़े अफसर तक केवल ‘गांधी’ की भाषा समझते हैं।

परिवहन विभाग में चांदी काट रहे कटर के बारे में सभी अफसर और वहां के कर्मी जानते हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। यहां पर उपर से लेकर नीचे तक गांधी का पूरा सम्मान होता है। तभी विभाग ने हाई सिक्यूरिटी नंबर प्लेट के नाम पर निजी कंपनी के अवैध वसूली से आम लोगों को नहीं बचा पाए। यानि यहां पर भी कटर सक्रिय रहे और वे अफसरों का जेब भरते रहे। आखिर परिवहन से रवि और शंकर का प्रेम कैसा जो पिछली बार भी यहां थे और अब भी यहीं पदस्थ हैं। इमानदारी का चोला ओढ़े अफसरों को देखों समझों और जानों ।

Check Also

CG News: कांग्रेस ने बनाई SIR की निगरानी समिति, मोहन मरकाम की अगुवाई में 14 सदस्यीय टीम का गठन

CG News: छत्तीसगढ़ में SIR को लेकर कांग्रेस ने निगरानी समिति बनाई है. छत्तीसगढ़ में …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *