ये 17 जून 2025 की बात है।दोपहर के 1.30 बज रहे थे। अटल मार्ग में एकात्मक परिसर से एयरपोर्ट जाने वाले चौराहे पर रेलवे स्टेशन से जगदलपुर जाने वाले मार्ग पर ग्रीन सिग्नल हुआ। कार, ट्रक मोटर साइकिल, सहित वाहन वाले जा ही रहे थे कि अचानक ही एकात्मक परिसर की ओर से किसी मंत्री या भाजपा के पदाधिकारी का काफिला निकला।पायलेटिंग गाड़ी ने सारे ट्रैफिक नियमों को ध्वस्त करते हुए, इस बात से बेफिक्र कि सरकार के द्बारा बनाए गए ट्रैफिक नियम,जिनके पालन करवाने ( उनको तो करना ही नहीं है) की जिम्मेदारी उन्हीं की है। खुद पुलिस ने ऐसी तैसी कर अनेक दुर्घटनाओं को नजर अंदाज कर काफिला निकलवा दिया।
हतप्रभ भीड़ में से अनेक वाहन चालकों ने ट्रैफिक नियम को तोड़ कर एयरपोर्ट जा रहे काफिले के पायलटिंग वाहन में बैठे पुलिस कर्मचारियों सहित, जो भी मंत्री या पदाधिकारी सहित उनके समर्थक, चम्मचों को भद्दी से भद्दी गालियों से लानत भेजी। ये भी कहा कि नियम बनाने वाली सरकार के सहभागी पार्टी सहित पुलिस विभाग की ये गुस्ताखी, सरकार के खिलाफ भविष्व में जनमत निर्माण करेगी। सत्ता का मद, अपना असर दिखाता है, ये बात किसी से छिपी नहीं है।जन प्रतिनिधि बनने से पहले और बाद में व्यक्ति के व्यवहार में फर्क बताता है कि सत्ता का सुख दिखाने के लिए बनी बनाई व्यवस्था को किस प्रकार तोड़ कर अभिमान का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाता है।
मुझे एक देश का नाम याद नहीं आ रहा है। उस देश के मंत्री ने सदन में जाने की जल्दबाजी में रेड सिग्नल देखे बगैर वाहन को रोका नहीं। मौके पर ट्रैफिक इंस्पेक्टर ने वाहन का पीछा किया और सदन के खत्म होने तक मंत्री का इंतजार किया।सदन खत्म होने पर सांसद बाहर निकले ,जुर्माना पटाया और अपने पद की जिम्मेदारी को न निभा पाने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया।
हमारे देश में ये परंपरा नहीं है। जन प्रतिनिधियों को छोड़िए उनके चवन्नी छाप समर्थक ही ट्रैफिक नियमों की सरे आम धज्जियां उड़ाते दिखते है। ट्रैफिक पुलिस रोक ले तो मोबाइल से निर्वाचित भैया, दादा से फोन करवा कर न केवल जुर्माना नहीं भरते उल्टा धौंस दिखा कर बताते है कि वे सत्तारूढ़ पार्टी के प्रतिनिधि है। लोकतंत्र के विद्रूप रूप है जिसमें जन प्रतिनिधि मिसाल नहीं बनते है बल्कि आम जनमानस में उपहास और आक्रोश के पात्र बनते है।
अटल मार्ग में हुई घटना में जितने जिम्मेदार जन प्रतिनिधि है उससे ज्यादा जिम्मेदार पायलटिंग वाहन का चालक और सवार पुलिस अधिकारी है। उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझना था। उनके जिम्मे लोगों से ट्रैफिक नियमों का पालन करवाना है वहीं सैया भये कोतवाल तो डर काहे का बताएंगे तों उनके लिए क्या भावना बनेगी।
जन प्रतिनिधि बता सकते है कि एयरपोर्ट जाने की जल्दी थी। इसमें साफ बात है कि हवाई जहाज के आने जाने और एयरपोर्ट में 45मिनट पहले पहुंचने का नियम है। ये बात बहुत पहले से मालूम होती है। यदि जन प्रतिनिधि समय के पाबंद नहीं है, नियमों से परे है और नियमों को तोड़ने या तोड़वाने में उन्हें मज़ा आता है, सुकून मिलता है तो ऐसे जनप्रतिनिधि और पुलिस के व्यवहार से हम सब आहत हैं
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