देहरादूनः केन्द्रीय जांच एजेंसी ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा उत्तराखंड सरकार के पूर्व तत्कालीन मंत्री रहें हरक सिंह रावत सहित कई अन्य आरोपियों के खिलाफ सात फरवरी को सुबह करीब साढ़े पांच एक बड़ी सर्च ऑपरेशन की कार्रवाई को प्रारंभ किया गया. इस दौरान राजधानी दिल्ली, उत्तराखंड, चंडीगढ़ और पंचकूला सहित कुल 16 लोकेशन पर सर्च ऑपरेशन की कार्रवाई को अंजाम दिया गया. दरअसल इस मामले की अगर बात करें तो ये सर्च ऑपरेशन उत्तराखंड से जुड़ा वन विभाग घोटाला का ये मामला है.
ये मामला उस वक्त का है, जब हरक सिंह रावत उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री थे. साल 2019 में बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रहें त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने साल 2019 में पाखरो में टाइगर सफारी निर्माण के लिए केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी मांगी थी. साल 2019-20 में पाखरो में करीब 106 हेक्टेयर वन भूमि पर कार्य भी शुरू कर दिया गया था. इसी प्रोजेक्ट के निर्माण के दौरान करीब 163 पेड़ काटे जाएंगे. इस तरह की बात उत्तराखंड सरकार के द्वारा बताया गया था, लेकिन बाद में जांच के दौरान पता चला की उस दौरान उससे कहीं ज्यादा संख्या में पेड़ काटे गए.
बाद में ये मामला नैनीताल हाईकोर्ट में गया और अक्टूबर 2021 में कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान ले लिया. उसके बाद केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI ) ने पिछले साल 2023 में इस मामले में एक एफआईआर दर्ज किया, जिसे बाद में केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी (ED ) ने टेकओवर करके मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत इस मामले की तफ्तीश शुरू कर दी. तफ्तीश में सीबीआई को पता चला की 163 पेड़ों की कटाई के स्थान पर करीब 6,903 पेड़ों को काटा गया.
उत्तराखंड वन घोटाला मामले की शुरुआती तफ्तीश के दौरान उत्तराखंड वन विभाग ने फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया यानी एफएसआई से इस मामले में जांच करवाई थी. जांच के दौरान बेहद चौंकाने वाला रिपोर्ट सामने आया था. जांच के दौरान पता चला की प्रोजेक्ट के लिए कानूनी तरीके से 163 पेड़ों की कटाई का निर्देश दिया गया था. लेकिन वहां अवैध तरीके से करीब 6,903 पेड़ों की कटाई कर दी गई. फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया ने उस पूरे इलाके को यानी पाखरो, कालू शहीद, नलखट्टा और कालागढ़ ब्लॉक इलाके का सैटेलाइट इमेज के मार्फत और फिल्ड निरीक्षण से तमाम मामलों की जानकारी और सबूतों को इकट्ठा किया गया. एनजीटी की रिपोर्ट में नाम आया था तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत का.
जांच एजेंसी ईडी के सूत्र के मुताबिक साल 2022 के अक्टूबर महीने ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण यानी एनजीटी ने इस मामले में स्वत: संज्ञान ले लिया. इस मामले में एनजीटी के द्वारा तीन सदस्य टीम का गठन किया गया था. इस समिति में वाइल्ड लाइफ विभाग के एडीजी, प्रोजेक्ट टाइगर विभाग के एडीजी, डीजी फॉरेस्ट को शामिल किया गया था. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल करके इस मामले की तफ्तीश करवाई जा रही थी. इस मामले की तफ्तीश करने के बाद समिति के द्वारा मार्च 2023 में इस कमेटी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी.
उसकी रिपोर्ट में निर्माण के नाम पर अवैध कार्यों की पूरी जानकारी दी गई और जिम्मेदार अधिकारियों के नाम पर रिपोर्ट में नाम भी लिखे गए थे. उसी रिपोर्ट में हरक सिंह रावत जो तत्कालीन वन मंत्री थे. उनकी भूमिका के बारे में विस्तार से रिपोर्ट बनाई गई थी. इसके साथ उस रिपोर्ट में वन विभाग के आठ वरिष्ठ अधिकारियों की भूमिका को देखते हुए उसे आरोपी बनाया गया था. इसी रिपोर्ट के आधार पर बाद में उत्तराखंड वन विभाग ने कार्बेट में तैनात रेंजर बृज बिहारी, डीएफओ किशन चंद, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जे.एस. सुहाग को निलंबित किया गया था. इसके साथ ही तत्कालीन पीसीसीएफ हॉफ राजीव भरतरी को भी उनके पद से हटाया गया था.
बता दें कि साल 2022 में भारतीय जनता पार्टी ने अपने कैबिनेट और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से हरक सिंह रावत को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते 6 साल के लिए बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद हरक सिंह रावत विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए. साल 2016 में हरक सिंह रावत सहित कुल 10 विधायकों ने पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत के खिलाफ बगावत की थी और भाजपा में चले गए थे.