अमीरों को बिजली छूट गरीबों से बिजली लूट, लूट सके तो लूट

छत्तीसगढ़ में लोहा बनाने वाले का अपना रौब है। इनसे लोहा नहीं लिया जा सकता है।ये लोग अमीर है और सबसे बड़ी बात इनमें एकता है।खासकर सुविधा लेने और सुविधा देने के मामले में। इनके भरोसे सरकारें रहा करती है। सरकारें क्या हजारों मजदूर भी रहते है। लोहा वाले सरकार को जीएसटी देते है, जनता को रोजगार तो माई बाप हो गए।
छत्तीसगढ़ की पुरानी सरकारों ने चाहे वह किसी भी दल के हो। पहले 15 साल के लिए बिजली के प्रति यूनिट के छूट दी गई। उसके बाद अगली सरकार ने समय नहीं देकर स्थाई रास्ता बना दिया।

ये बात जरूर थी कि कांग्रेस के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने बिजली का बिल हाफ का वादा आम जनता से किया था उसे ईमानदारी से निभाया। सरकार में वापस आते तो फिर से निभाते। नई सरकार आई तो डेढ़ साल तक आम जनता को बिजली के बिल में निर्धारित यूनिट तक हाफ दर के आधार पर बिजली देती रही. अचानक सरकार के नुमाइंदों को क्यों लगा कि स्टील लॉबी को छूट बड़े पैमाने पर और आम जनता को बड़े पैमाने पर लूटना है? सरकार जब भी अमीरों को छूट देती है तो सूंघने वालों को सबसे पहले भ्रष्टाचार की बदबू सुंघाई देती है। अफवाहों का बाजार सजता है।आंकलन होता है और फिर तरह तरह की बातों का जन्म होता है।

भाजपा के दो घड़ों की बाते सुनने में आती है। सभी जानते है कि नई सरकार में भाजपा के पुराने दिग्गजों को दरकिनार कर दिया गया है। बृज मोहन अग्रवाल को राज्य से बाहर का रास्ता दिखाया गया तो अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर,धर्म लाल कौशिक सहित राजेश मूडत लता उसेंडी को मंत्री मंडल में शामिल नहीं किया गया।अनेक महत्वाकांक्षी निर्वाचितों को लगा था कि उनकी जीत मायने रखेगी लेकिन उनको भी ठेंगा दिखा दिया गया। मन के भीतर का आक्रोश कैसे निकले? ये उपेक्षित लोग तो थोड़ा बहुत मुंह सिल लेते है लेकिन इनके समर्थक नाराज़ है।कार्यकर्ता नाराज है।उनके घर का भी बिजली बिल इस आक्रोश में करंट लगा रहा है। ये दूसरा महीना है जब लोग आक्रोशित है। राज्य की जनता खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

कौन है ठग
भाजपा की सरकार बनने के बाद राज्य में ये भावना बलवती थी कि राज्य के आदिवासियों ने जम कर समर्थन दिया है। राज्य के आदिवासी जिलों में गरीबों में गरीब निवास करते है जिनके पास सीमित संसाधन है।उनके लिए सौ दो सौ रुपए भी मायने रखता है। ऐसे ही शहरी क्षेत्रों में रहने वाले मजदूर वर्ग ने भी ये भरोसा तो किया था क्योंकि हाफ रेट पर बिजली मिलती रहेगी और वोट भी इसी कारण दिया था। दोनों वर्गों को ठगने वाला कौन है?

अफवाह की दुनियां में बात चल रही है
आम जनता की अफवाह लिए हुए धारणा है कि 1400 करोड़ रुपए की छूट स्टील लॉबी को देने के पीछे चाल भी गलत है, चेहरा भी गलत है और चरित्र तो बंटाधार है।
उद्योगपति को छूट कभी भी बिना शर्तों के नहीं दी गई है। आजकल शर्त का मतलब केवल और केवल अंडरडील है। सरकार के सरकारी नुमाइंदे और सलाहकारों की चौकड़ी ऐसे काम में माहिर होते है। अफवाह है कि स्टील लॉबी को 1400 करोड़ की छूट के पीछे भी नया दलाल रवि मिश्रा की भूमिका अहम है। अफवाह ये भी है कि स्टील लॉबी को सेट करने की जिम्मेदारी दिल्ली से छत्तीसगढ़ आए एक अफसर को इस काम में हिस्सेदारी दी गई।

अगर पिछले साल ओर इस साल के टैरिफ का तुलनात्मक विश्लेषण करे तो स्टील उद्योग पर मुख्य रूप से छूट पर छूट दी गई है। 220 किलोवाट वालो को 45 पैसा, 132 किलो वाट वालों को 35 पैसा, 33 किलो वाट वालों को 30 पैसा,11 किलोवाट वालो को 60 पैसा 11 किलोवाट (द्वितीय)को 10 पैसे की और छूट पिछले साल की तुलना में दी गई है। क्यों दी गई है, इसका कोई जवाब नहीं है। अफवाहों में जवाब है कि विद्युत नियामक आयोग के पूर्व चेयरमैन हेमंत वर्मा (जिसकी नियुक्ति भूपेश बघेल ने किया था) ने अपने को भाजपा में स्थापित करने के लिए योजना बनाई थी, एक व्यक्ति की अहम भूमिका थी जिसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय में हुई थी। 55 करोड़ की डील की अफवाह है। अफवाह फैलाने वाले ये भी फैला रहे है कि स्माल स्टील प्लांट से 40 और कैप्टिव स्टील प्लांट वालो से 15 करोड़ रुपए की अंडर डील हुई है। अफवाह ये भी है कि अहम व्यक्ति द्वारा ये राशि करेंसी टावर में मां कुंद्रा गढ़ी ग्रुप में पहुंच कर ठिकाने भी लग गया।

आम जनता जानना चाहती है कि उनको 10 से 20 पैसे का अधिभार क्यों थोपा गया और स्टील प्लांट उद्योग को 10 से45पैसे की छूट बेवजह नहीं दी जा सकती है। कुछ व्यक्ति और नौकरशाह के व्यक्तिगत लाभ के लिए छत्तीसगढ़ की गरीब और मध्यम वर्गीय जनता सालों। दोगुना तिगुना बिजली का बिल देते रहेगी। अफवाह ये भी है कि। 55 करोड़ रुपए की सालाना किश्तबंदी हुई है। जवाबदेह सरकार इन अफवाहों का खंडन करेगी या मौन सहमति देगी? कल आगे की किश्त……..

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