स्वास्थ्य और शिक्षा को देश की जनता का मूलभूत अधिकार माना जाता है।भूपेश बघेल के कुशासन में एक भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां घोटाला न हुआ हो। अनियोजित भ्रष्ट्राचार तो हर पार्टी की सरकार में होता है,होता रहेगा। इस प्रथा को प्रशासन और जनता की स्वीकृति मिली हुई है। नियोजित भ्रष्ट्राचार से आम जनता प्रभावित होती है।
भूपेश बघेल के चांडाल चौकड़ी ने भूतपूर्व स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव को कागजी मंत्री बनाकर रखा था।सीधे साधे बाबा साहब आधे कार्यकाल के मुख्य मंत्री बनने के चक्कर में शांत रहे। उनकी सिधाई का फायदा भ्रष्ट अधिकारियों की टीम ने उठाया। 650 करोड़ रुपए का दवा और स्वास्थ्य उपकरण के घटिया आपूर्ति का मामला है। इतनी बड़ी राशि का घोटाला तभी हो सकता है जब विभाग के प्रमुख आई ए एस अधिकारी शामिल हो और उन्हें शासन के शीर्ष नेताओं का संरक्षण मिले।
ये बात गले से नीचे उतरने वाली बात नहीं है कि मोक्षित कार्पोरेशन के कर्ता धर्ताओ ने 650 करोड़ रुपए तत्कालीन जी एम, डिप्टी डायरेक्टर, सहित कुछ छोटे अधिकारयों ने हजम कर लिया होगा। आबकारी विभाग के 2100 करोड़ रुपए के घोटाले में सिर्फ 88 करोड़ पाए है याने सिर्फ 4प्रतिशत, 650 करोड़ के घोटाले में में 5 प्रतिशत भी छोटे अधिकारियों के हिस्से में आया भी होगा तो 32.50 करोड़ आया।बाकी 617.50 करोड़ रुपए कहां गए? ये राशि तत्कालीन आई ए एस अधिकारियों और तत्कालीन मुख्यमंत्री के कार्यालय में बैठे थोक भ्रष्टाचार चौकड़ी के हाथ लगा है.
ईडी की तीन आई ए एस अधिकारी भीम सिंह, चंद्रकांत वर्मा और डॉ प्रियंका शुक्ला सहित कुछ और चिन्हित अधिकारी है जिनका गिरफ्तार होना भाजपा के जीरो टॉलरेंस के हिसाब से जरूरी है। स्वास्थ्य विभाग के प्रभावित अधिकारियों के परिवारों को शंका है कि भाजपा के कुछ शीर्ष मंत्री इन आई ए एस अधिकारियों के लिए दिल्ली लॉबिंग कर रहे है। अगर ऐसा है तो ये जीरो टॉलरेंस के लिए कही गई बात में सच्चाई कम ही है
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