रायपुर। शिक्षक एबिलिटी टेस्ट, जिसे टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट ( टेट) सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए एक अनिवार्य योग्यता परीक्षा है, जिसे केंद्र सरकार (CTET) और राज्य सरकारें आयोजित करती हैं। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों के लिए आवश्यक है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह पहले से कार्यरत शिक्षकों पर भी लागू होती है, जिन्हें दो साल के भीतर यह परीक्षा पास करनी होगी, अन्यथा वे नौकरी खो सकते हैं या सेवानिवृत्त किए जा सकते हैं।
देश व्यापी निर्णय को लेकर वर्षों से इस फील्ड से जुड़े शिक्षकों ने विरोध शुरू कर दिया है। पूरे देश में इसे लेकर अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही है। शिक्षकों का कहना है कि सेवा के अंतिम पढ़ाव में पहुंचने वाले शिक्षक को योग्यता सिद्ध करना पड़े इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है। वैसे देखा जाए तो शिक्षकों की भर्ती अब बीएड, डीएड और अन्य योग्यता होने पर ही होती है। एक तरह से यह भी टेट के समान ही माना जाना चाहिए। क्योंकि जिसे शिक्षक बनना है वह इस परीक्षा को पास करके आता है। वैसे नए लोगों के लिए यह परीक्षा अनिवार्य किया जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है।

एक समय था जब स्लैट की परीक्षा उच्च शिक्षा में नियुक्ति के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। वेकेंसी न होने के कारण अधिकांश लोगों का आज भी निराशा हो रही है। रोजगार के साधनों की कमी होने के साथ ही देश में प्रतियोगिता बढ़ती जा रही है। उसे कम करने नए-नए प्रयोग किए जाते हैं। सरकार को व्यवहारिक तरीके से इन बातों पर विचार करने के बाद इसे लागू करना चाहिए।
निजी क्षेत्र में शिक्षा आज के दौर में व्यवसाय बन चुका है। ऐसे में टेट औद स्लैट जैसा फार्मूला लोगों को भ्रमित करने के लिए लाया जाता है। वैसे कोर्ट के निर्णय पर सरकार भी बाध्य होती है। शिक्षकों को चाहिए कि इस पर पुर्नविचार और रिवीजन पिटीशन दाखिल कर निर्णय के औचित्य पर सवाल उठाना सही होगा। व्यवसायी करण के दौर पर संस्थान ऐसे नए कोर्स ला रहे हैं जिनका रोजगार से कोई लेना देना नहीं केवल पैसा कमाना रह गया है। ऐसे कोर्स को बंद कर लोगों को सहीं मार्गदर्शन देना चाहिए। वैसे शिक्षा के लिए जो नीति बनाई जाए उसमें शिक्षकों को छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान के कोर्स ही कराए जाएं।
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