रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित सरस्वती शिक्षा मंदिर, छत्तीसगढ़ नगर में जारी गीता ज्ञान अमृत वर्षा कथा के दौरान रविवार को परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरुजी), प्रयागराज वाले ने अपने श्रीमुख से दिव्य प्रवचन दिया। व्यासपीठ की पूजा अर्चना करने के बाद कथा की शुरुआत करते हुए गुरुजी ने कहा कि गीता सबसे सरल ग्रंथ है, और जो इसे अपनाता है उसका जीवन भी सरल हो जाता है। उन्होंने कहा कि गीता को समझने वाला व्यक्ति प्रेम, आनंद और शांति में डूब जाता है, किंतु मनुष्य इसे सरल समझा ही नहीं क्योंकि मनुष्य जटिल होते हैं, इसलिए उसे गीता भी कठिन लगती है।
गुरुजी ने आगे कहा कि परिक्रमा में नहीं अपितु अपने पराक्रम में विश्वास करना चाहिए,अपने अंदर के विक्रांत को जगाना विक्रांत अर्थात महा पराक्रमी। अपने सद्गुण को जगाना, कर्मठ होना, हम आलसी बनकर दूसरों के सामने हाथ फैलाने पर भरोसा रखते हैं जब हम कर्मठ हो जाएंगे और स्वयं पर भरोसा रखेंगे तो भगवान हमारे साथ सहयोग के लिए खड़े रहते हैं अपने पराक्रम पर भरोसा रखना।

हम पराक्रम कम परिक्रमा अधिक करते हैं दूसरों के पीछे भाग कर हाथ फैलाते हैं जब परिक्रमा नहीं पराक्रम करेंगे अर्थात स्वयं मेहनत करेंगे अपनी मेहनत पर भरोसा रखेंगे तो हमें कहीं परिक्रमा करने की किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता ही नहीं होगी गुरुदेव विश्वास और भरोसा का अर्थ बताते हुए यह बताएं कि विश्वास में हमें संदेह होता है किंतु भरोसा में संदेह का विसर्जन हो जाता है। इसलिए परमात्मा पर विश्वास नहीं भरोसा करना चाहिए।
जहां समस्या पैदा करने वाला है वहां समाधान करने वाला भी खड़ा होता है…
कथा में गुरुदेव बताएं कि जब हम कोई अच्छा कार्य करते हैं तो अनेक प्रकार की परेशानी आती है लेकिन समस्या को देखकर हमें भागना नहीं चाहिए क्योंकि जहां समस्या करने वाले होते हैं वहां समाधान करने वाला भी होता है और समाधान करने वाला भगवान ही होता है, हमेशा समस्या की हार होती है और समाधान की जीत होती है इसलिए हमें अपने पराक्रम पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए।
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