सत्ता में तानाशाही होने से भूपेश जैसा हश्र तो दिखेगा ना, उसी जांच एजेंसी का दुरूपयोग कैसे किया याद करें

सत्ता में तानाशाही होने से भूपेश जैसा हश्र तो दिखेगा ना, उसी जांच एजेंसी का दुरूपयोग कैसे किया याद करें
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने कोयला घोटाले में पेन ड्राइव पर बयान के मामले को लोकतंत्र का हनन बताते हुए कहा कि जांच एजेंसियां कोर्ट का दुरूपयोग कर रही है। यहीं बात अगर उनके शासन काल की जाए तो बड़ी हो जाती है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान

लोकतंत्र उस समय शीर्षासन कर रहा था यह नहीं दिखाअपने शासन काल में फर्जी मामले बना कर जीपी सिंह, अशोक चतुर्वेदी, सुनील नामदेव, को निपटाने की बहुत कोशिश की गई थी। सभी को फसाने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय की सौम्या चौरसिया सरगना बनी थी। पुलिस के कुछ दलालो जिसमें अभिषेक माहेश्वरी प्रमुख था, प्रसिद्धि पाने के लिए सारे नियम कायदे तोड़ कर मामले बनाए थे।

खुद सोना ट्रांसपोर्ट कर जीपी सिंह को परेशान किया। अशोक चतुर्वेदी के विरुद्ध तमाम फर्जी मामला बना कर बर्बाद करने में कमी नहीं की गई! फर्जी मामला का आलम ये था की जो कभी अमेरिका अरब नहीं गया उसे न्यूयार्क इस्तांबुल दुबई जाने का मामला बना दिए. पासपोर्ट पुलिस अपने पास रख ली पर इमिग्रेशन में कुछ कर नहीं पाये!

सुनील नामदेव के घर में मादक पदार्थ रखवा कर नारकोटिक्स का केस बनाया गया। इतने लोगों की बुरी आह लगनी ही थी, लगी और आगे और लगेगी। सभी का घर परिवार होता है, सभी के मां बाप, भाई बहन, होते है। पत्नी होती है, बच्चे होते है। तीनो के घर में दर्जन भर पुलिस वालों को भेजना अपने निरंकुश होने का प्रमाण देना था।आज तीनो को परेशान करने, जेल भेजने वालों की असलियत सामने है।

सुंदरकांड में ये भी लिखा है
सचिव, बैदे, गुरु तीनी जो प्रिय बोलहि भय आस!
राज धर्म तन तीनी कर होही बैगिही नाश!!

सौम्या चौरसिया जिला बदर भी नहीं राज्य बदर है। अभिषेक माहेश्वरी बस्तर में छटपटा रहा है। बालोद आना चाहता है, भाजपा के एक नेता की मदद से लेकिन छटपटाहट खत्म नहीं हो रही है।जिस मुख्यमंत्री के शह पर राज्य में पुलिस की गुंडागर्दी दौड़ रही थी आज आंच उसके घर तक पहुंच गई है। भूपेश बघेल, स्वयं पिता है, बेटे का दर्द झेल रहे है। परिवार परेशान है। सब यही चुकाना है।

सुंदर कांड में लिखा है
काम, क्रोध,”मद”, लोभ सब नाथ नरक के पंथ!
और लिखा गया है
जहां सुमति तह संपत्ति निदाना!
जहां कुमति तह विपत्ति निदाना!!

ख़ुद सौ से अधिक लोगो को जेल भेज चुका प्राणी ना जाने कितने परिवार का बद्दुआ ले रहा है !सूर्यकांत की चमक ख़त्म हो गई, अनवर अब आह भर रहा, अनिल टूट चुका है, जो टीन की कुर्सी में वेस्टर्न कमोट का आनंद उठा रहा है, यही है ईश्वर का न्याय! अभी बहुत कुछ देखा जाना है !!!बहुत तो चिन्हारी बने रेहेस अब उड़ता तीर ले संगवारी

निकल गई हेकड़ी सौम्या चौरसिया की

सुप्रीम कोर्ट का भ्रष्ट्राचार के मामले में एक निर्णय है कि जिस शासकीय कर्मचारी पर अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगा है उसके घोषित आय (जो आयकर विभाग को दिया जाता है) से दस फीसदी आआय की छूट दी जाए क्योंकि सारे आय का हिसाब किताब रखना कठिन है।इसे ऐसे समझिए कि सौम्या चौरसिया की आय घोषित तौर पर 2करोड 89लाख रुपए होती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के हिसाब से 20लाख 8 हजार 900रुपए की छूट मिलेगी। ई ओ डब्ल्यू विभाग न 1872प्रतिशत अधिक अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने का आठ हजार पन्नों का चालान विशेष अदालत में दाखिल कर दिया है।

इस चालान के हिसाब से भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री कार्यालय में “मेरी उपसचिव” सौम्या चौरसिया ने सरकारी नौकरी में अनुपातहीन भ्रष्ट्राचार किया।संरक्षण पाकर पद का दुरुपयोग किया।अपनी मां, भाई,पति सहित बेनामी रूप अचल संपत्ति खरीदी की। ज्ञात रूप से 50करोड़ रुपए की अवैध संपत्ति अर्जित की । इसमें से 46.00 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति कुर्क कर ली गई है। अज्ञात रूप से करोड़ो रुपए का सोना, नगद, और विदेशी मुद्रा सहित दुबई में निवेश के मामले अभी सामने आना बाकी है।

आमतौर पर कम उम्र और राज्य की लोक सेवा आयोग परीक्षा में प्रवीण्य आने वालों को डिप्टी कलेक्टर पद मिलता है और भविष्य में एक समय के बाद ये लोग प्रमोट होकर आई ए एस भी हो जाते है। सौम्या चौरसिया भी ऐसी ही महिला थी।इनका आई ए एस प्रमोशन का लिफाफा बंद है(इसका खुलना मुश्किल है क्योंकि सौम्या चौरसिया के खिलाफ हर जांच एजेंसी ने चार्ज शीट दाखिल किया हुआ है।सजा मिलने की भी पूरी संभावना है। सरकारी नौकरी में सीनियरिटी और जूनियरिटी बहुत मायने रखती है।

खास कर भारतीय प्रशासनिक सेवा में तो कैडर के आधार पर सम्मान परम्परा बहुत अधिक है। सौम्या चौरसिया, राज्य सेवा से चयनित हुई थी। मुख्य मंत्री कार्यालय में उप सचिव बनते ही सारी मर्यादा की सीमा लांघ दी। आई ए एस और आई पी एस अधिकारियों को नाम से बुलाना फितरत हो गई थी। साला, कमीना शब्द सामान्य था। इस खेल में कुछ नामजद आई ए एस, आई पी एस भी शामिल थे जो खुद अपना ईमान बेच कर सौम्या चौरसिया की चाकरी कर रहे थे, तलुवे चाट रहे थे। दरबान बन कर शह देते थे। राज्य सेवा का एक डीएसपी अभिषेक माहेश्वरी तो भांड बनकर दलाली करता था।

सौम्या चौरसिया,ने पेंशन पाने वाली मां, सीधे साधे पति और अवसर परस्त भाई सहित कई रिश्तेदारों के नाम पर अचल संपत्ति खरीदी। जांच एजेंसी को जितने दस्तावेज मिले है उसके आधार पर पचास करोड़ रुपए की अचल संपत्ति का खुलासा हुआ है। कोयला,शराब, राशन चांवल, डीएमएफ, घोटाले सहित सभी घोटाले में सौम्या चौरसिया को हिस्सेदारी मिलती थी। पांच हजार करोड़ का घोषित घोटाला उजागर हो चुका है।

दस फीसदी भी हिस्सेदारी मान लिया जाए तो सौम्या को चौरसिया के हिस्से 250करोड़ रुपए आए है। खबर है कि बंगलुरू में अन्य व्यक्तियों के नाम पर फ्लैट खरीदे गए है।ढेबर परिवार ने दुबई में जो सोने की दुकान खोली है उसमें भारी निवेश किया गया है।नगद राशि के रूप में करोड़ो रुपए ठिकाने लगाए गए है।इनकी जांच जरूरी है ताकि सरकार के नशे में डकैती करने वाली सौम्या चौरसिया को सबक मिल सके।

क्या आक्रमण ही सुरक्षा है या सुरक्षा के लिए आक्रमण है
जांच एजेंसियो के द्वारा किसी प्रकरण में संदिग्ध लोगों से पूछताछ करने का सर्वाधिकार सुरक्षित है।इसमें न्यायालय भी हस्तक्षेप नहीं करता है। बड़े मामले में तो और भी न्यायालय जांच एजेंसियो को सुरक्षा प्रदान करता है। इतने के बावजूद अगर कोई व्यक्ति जांच एजेंसी के खिलाफ प्रतिवाद करता है तो इसके कई मायने निकाले जाते है। पहला कि जिस व्यक्ति को जांच एजेंसी ने पूछताछ के लिए बुलाया है वह दिखावे की बात कर रहा है, सहानुभूति पाने के लिए, दूसरा वह व्यक्ति एजेंसी के द्वारा पूछताछ के दौरान किए जाने वाली कड़ाई से बचना चाहता है और तीसरा यह कि वास्तव में व्यक्ति निर्दोष है और भय के कारण न्याय चाहता है। कोयला और डीएमएफ( दो -दो) घोटाले में निखिल चंद्राकर को आर्थिक अपराध अनुसंधान विभाग ने प्रकरण दर्ज किया है।

कांग्रेस के पिछले शासनकाल में सरकार के नुमाइंदे सहित जितने भी आरोपी पकड़ाते थे,उनके लिए पुलिस वाला गुंडा जनसंपर्क से अनधिकृत प्रेस विज्ञप्ति जारी करवाता था। सेंसरशिप थी, झकमारी सारे समाचार पत्र छापते थे। निखिल चंद्राकर, निवासी महासमुंद को कांग्रेस शासनकाल में कोयला घोटाले के मास्टरमाइंड सूर्यकांत तिवारी का विश्वस्त सहयोगी माना जाता रहा है। टन पीछे रुपया वसूली करना ,और सही जगह (अनिल टुटेजा,सौम्या चौरसिया, राम गोपाल अग्रवाल ,समीर विश्नोई सहितअनवर ढेबर) तक पहुंचाने की जिम्मेदारी निखिल चंद्राकर की थी। ईडी ने ताबड़तोड़ छापे मारे थे तो निखिल चंद्राकर फरार हो गया था जिसे बाद में मुंबई से पकड़ा गया था।

निखिल चंद्राकर पर एक युवती ने बलात्कार की रिपोर्ट भी न्यायालय के आदेश पर दर्ज करवाई है।इस युवती के यहां से मेडिकल रिपोर्ट और अन्य दस्तावेज चोरी के लिए निखिल चंद्राकर के दो गुर्गे निलेश सरव्या मोंटी और गणेश वर्मा गोलू को पुलिस गिरफ्तार भी की है। निखिल चंद्राकर सीखा हुआ आरोपी है।अपने पकड़ाए जाने के बाद विभिन्न माध्यमों से ईडी के अधिकारियों की शिकायत किया। अब भूपेश बघेल के करीबी गिरीश देवांगन के माध्यम से न्यायालय में शिकायत कर रहे है कि निखिल चंद्राकर के द्वारा एसीबी के द्वारा दर्ज मामले में इकबालिया बयान (धारा 164के तहत) की प्रक्रिया गलत होने का आरोप मढ़ा है।

कोयला घोटाले में मुख्यमंत्री कार्यालय के चौकड़ी पैसा वसूल करवाते थे। पैसा सुरक्षित पहुंचे इसके लिए थानों में वाहनों के नंबर थे जिनकी जांच नहीं होती थी। निखिल चंद्राकर इस काम में शातिर था। विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने निखिल चंद्राकर के मामले। आक्रामक बनी है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आरोप लगा रहे है कि निखिल चंद्राकर का धारा 164के तहत लिया गया बयान विधिक नहीं है। इसे पूर्व में लिखवा कर जबरदस्ती हस्ताक्षर करवाने के बाद पेन ड्राइव के माध्यम से न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है। धारा 164के तहत न्यायधीश के समक्ष स्वप्रेरणा से कथन लिपिबद्ध किया जाता है। इस दौरान कोई भी जांच दल का अधिकारी आसपास नहीं होना चाहिए।

भाजपा शासन काल में राज्य की जांच एजेंसी पर भी निखिल चंद्राकर ने ईडी के अधिकारियों के बाद शिकायत की है। इसे ऑफेंस इस द बेस्ट डिफेंस मान सकते है। इसमें से किसी भी पक्ष के सही होने पर दूसरे पक्ष की किरकिरी होना तय है। एक बात और है कि शासन किसी भी पार्टी का हो।एसीबी के प्रमुख विवादास्पद ही होते रहे है। आरिफ शेख पिछली सरकार में रिश्वत खोरी और अनुपातहीन संपत्ति के प्रकरण बनना बंद था लेकिन चौथ वसूली का कीर्तिमान रचा गया। अपने ही विभाग के अधिकारी को सोना भिजवाने के नाम पर इसी आरिफ शेख ने षडयंत्र रचा था।

पप्पू का सींबा और भाजपा में अंदरूनी कलह
छत्तीसगढ़ में पीने और पिलाने वालों को यहां की दुकानों में केवल पप्पू का सींबा बियर ही उपलब्ध हो रहा है। वैसे तो यह ब्रांड कांग्रेस शासन में भी काफी नाम कमाया। शराब घोटालें के किरदारों ने इसे लेकर बड़े खेल किए। उस समय भी कांग्रेस कोषाध्यक्ष रामगोपाल के माध्यम से यह ब्रांड दुकानों में घुसा। अब की बार भाजपा कोषाध्यक्ष राम गर्ग को ले आए हैं। अब इसे लेकर यह कहा जा रहा है कि इससे मिलने वाले फंड को इधर-उधर कर फिर से पुराने कोषाध्यक्ष के ढर्रे पर चलने की कोशिश हो रही है।

मामला सामने आने के बाद भाजपा पदाधिकारियों की त्याेरियां चढ़ गई है। रामू अपने काम के प्रति इमानदार है। हों भी क्यों न उन्हे सत्ताधारी पार्टी में कोष की रक्षा और उसे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है। यहां पर पदाधिकारी इसलिए नाराज है कि शराब के पैसे से कोष को भरने से अच्छा है कुछ और किया जाता। इधर शासन के नुमांइदें भी इसे लेकर कुछ नहीं कह पा रहे हैं। हर दुकाने में इसकी जितनी पेटियां बीक रह है उससे सेल्समैन से लेकर अन्य लोगों को कमाई हो रही है। रामू भी अपने पद की रक्षा के लिए करोड़ों का पेश्गी दे रहे हैं।

यहां एक बात बता दें की एक राम ने अपने काम से अपने ही सरकार को दफन किया। अब दूसरे राम ने भी वही रास्ता चुना है। अंत कहीं पहले जैसा न हो इस बात से पार्टी पदाधिकारी डर रहे हैं। अब पूरा मामला राम के पुराने दोस्त के पास पहुंचा, तो उन्होंने मामले पर ध्यान नही दिया। कहने लगे की लखन को बता दे वे इसे संभालेंगे; यहां पर यह बता दें कि शासन ने शराब से कमाई करने हर तरह के काम किए हैं; लायसेंस से लेकर दुकानों की संख्या भी बढाई ही है; फिर भी अब बिहार चुनाव के फंड भी जारी करना है उसी की तैयारी में पप्पू का साथ ले लिया; अब देखना है की सींबा आने वाले साल में क्या गुल खिलाता है.

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