रायपुर। वैसे बड़े आयोजनों में ऐसा देखा गया है कि सामान ढोने के लिए वाहनों का इंतजाम न होने से जो उपलब्ध रहता है उसका इस्तेमाल किया जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना दिवस पर आयोजित रजत जयंती राज्योत्सव कार्यक्रम में नगर निगम कोरबा की गंभीर लापरवाही उजागर हुई है। ओपन थिएटर में आयोजित राज्योत्सव स्थल पर मुखामंत्री, उपमुख्यमंत्री और श्रम मंत्री सहित अन्य जनप्रतिनिधियों के कटआउट को पशु ढोने वाले वाहन (काऊ कैचर ट्रॉली) में लाया गया।अब इसका वीडियो वायरल होने से सोशल मीडिया में यह चलने लगा, तो अधिकारियों को लगा कि गलत हो गया।
वैसे फोटो और वीडियो जारी करने वाले ले एक तीर से दो निशाना साधा है। एक ओर सड़कों पर पशुओं की रोज मौत हो रही है। ऐसे में प्रशासन को इसका उपाय करना चाहिए वो नहीं कर रहे हैं। निरीह जानवार मर रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के हर शहर में जिला प्रशासन से लेकर निगम और नगर पालिका के द्वारा इन्हें सड़क से हटाने की कोई व्यवस्स्था नहीं की जा रही। ऐसे में जनता को संदेश देने और प्रशासन की लापरवाही
फोटो उजागर करता है। काउ कैचर में जानवरों को पकड़ कर कैसे ठूंसा जाता है। यहां ये बता दें कि काम के समय अफसर वहां की समस्याओं पर ध्यान न देकर काम कैसे भी हो यही चाहते हैं। उन्हें यह मालूम करने की फुरसत नहीं होती कि आखिर काम कैसे किया जा रहा है। सोशल मीडिया में वायरल फोटो और वीडियो ने सीधे तौर पर एक जनहित के मुद्दे को अपने तरीके से खेल दिया।

मामले को गंभीरता से लेते हुए तीन अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर 48 घंटे में जवाब तलब किया है। बताया जा रहा है कि यह घटना दूसरी बार दोहराई गई है, जबकि 11 सितम्बर को भी इसी तरह नेताओं के कटआउट पशु ट्रॉली में ढोए जाने पर चेतावनी दी गई थी। मामले में उप अभियंता अश्विनी दास, स्वच्छता निरीक्षक रविंद्र वाईव और उप अभियंता अभय मिंज को जिम्मेदार मानते हुए नोटिस जारी किया है। नेता बताते है कि मुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्रियों सहित जनप्रतिनिधियों की गरिमा से जुड़ा यह मुद्दा अत्यंत संवेदनशील है। उन्हें काउ कैचर से नहीं ले जाना चाहिए।
निगम आयुक्त ही दोषी
यहां यह देखना चाहिए कि निगम आयुक्त ने आखिर वहां पर क्या व्यवस्था की थी। जब वाहन नहीं रहेगा तो काउ कैचर से ही सामना ढोया जाएगा। वैसे निगम आयुक्त आशुतोष पांडेय से यह पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने वहां खड़े होकर काम का आंकलन किया। अभियंता लेबल का अफसर भी वहां तो केवल काम कराने के लिए थे। अब उन्हेंं क्या मालूम कि ऐसा भी होगा। वैसे पूरे मामले में निगम आयुक्त पर कार्यवाही होनी चाहिए। वैसे प्रदेश के अफसर अपना कलम बचाने दूसरों के कंधे में बंदूक रखकर चलाते हैं। उनकाे इसकी परवाह नहीं रहती कि काम कैसे हो रहा है। वैसे पांडेय का जलवा पिछली बार रमन सरकार में देखा गया था। जब एक मंत्री के ओएसडी थे। जब राजस्व के मामलों में कई प्रकरणों में मनमर्जी चलाई थी। वो जहां थे उनका काम तमाम जनता ने कर दिया। अब देखना है कि निगम आयुक्त को सरकार इसेके जद में लाती है कि नही।
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